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________________ कभी इस वर्ग की ओर भागता है, कभी उस वर्ग की ओर। कभी 'गंगा गए तो गंगादास' कभी 'जमना गए तो जमनादास' की अनिश्चयसूचक लोकोक्ति का शिकार हो जाता है बेचारा नेता । सबको सब तरह खुश रखने से बढ़कर और कौन-सा मिथ्याचार हो सकता ? विभिन्न अपेक्षाओं के चक्रव्यूह में बेचारा अभिमन्यु मरेगा नहीं तो क्या होगा ? लोकहित क्या है ? आज लोकहित का प्रश्न है । प्रश्न ठीक है । परन्तु लोकहित क्या है, इसकी परिभाषा कौन निश्चित करेगा ? जनता में कोई एक परिभाषा निश्चित नहीं है | भिन्न-भिन्न लोकहित और लोकहित के मार्ग हैं - एक दूसरे के विपरीत जनता के पास ! कौनसा लोकहित और उसका मार्ग अपनाया जाएँ? उक्त समस्या : का समाधान तटस्थ प्रामाणिकता के साथ नेता को करना है या जनता को ? उचित दवा की तजबीज डाक्टर को करनी है या मरीज को ? घूमफिर कर क्या करना और क्या न करना, यह सब दायित्व नेता पर ही आ जाता है - क्योंकि वह नेता है, अनुयायी नहीं है, वह गुरु है, शिष्य नहीं है । लोकमूढ़ता लोकमूढ़ता बहुत बड़ी मूढ़ता है । भगवान महावीर के दर्शन में यह भी मिथ्यादृष्टि का एक रूप है । अनेक लोक-परंपराएँ विवेक से परे हैं, अत: वे मूढताएँ हैं । मूढ़ व्यक्ति ही उन्हें पकड़े रहते हैं। इसे ही कहते हैं-गधे की पूँछ पकड़े रहना और दुलत्ती खा-खाकर घायल होते रहना । सम्यग्दृष्टि होने के लिए लोकमूढता का परित्याग आवश्यक है । अधिकतर लोकमानस गतानुगतिक होता है । पारमार्थिक नहीं होता । हर बात के लिए वह यही कहता है कि जी, पहले से चली आ रही है, नयी तो नहीं है । इसीलिए कहा है एक मनीषी ने गतानुगतिको लोकः, न लोक:पारमार्थिकः । यह सिंहचाल नहीं, भेड़चाल है । प्रतिस्रोतगामिता नहीं, अनुस्रोतगामिता है | वेगवान् प्रवाह के प्रतिकूल तैरना प्रतिस्रोतगामी सिंहों का काम है, अनुस्रोतगामी भेड़ों का नहीं । बात कड़वी अवश्य है, पर है यथार्थ और साथ ही हितकर । (२०४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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