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________________ महावीर के निर्णय युगानुकूल भगवान महावीर का युग आता है | कोमल नियम शिथिलाचार या भ्रष्टाचार का रूप लेते हैं। भगवान महावीर फिर अपरिग्रह के चरम आदर्श अचेल-नग्नता-आदि के कठोर पथ पर चल पड़ते हैं। यह परिवर्तन आवश्यक था, उन्होंने बिना किसी उलझन के किया । इस परिवर्तन में पूर्ववर्ती मध्य के तीर्थंकरों की अवज्ञा नहीं है। पार्श्वनाथ या उनसे पहले के धर्म-तीर्थंकरों का अपमान नहीं । अपने समय में उनके निर्णय सही थे और अपने युग में प्रभु महावीर के। दोनों में विरोध कहाँ है यदि सामयिक उपयोगिता को लक्ष्य में रखा जाए। गौतम द्वारा समन्वय और, महावीर का ही यह निर्णय उन्हीं के ज्येष्ठ शिष्य प्रथम गणधर गौतम ने बदल डाला । श्रावस्ती में श्रमण केशीकुमार के पार्श्वसंघ और अन्य सम्प्रदायों के परिव्राजक एवं गृहस्थों के समक्ष उन्होंने स्पष्ट घोषणा कर दी कि यह नग्नता आदि सब क्रियाकाण्ड युग-धर्म पर आधारित है। यह साधना का मूल अंग नहीं है । उत्तराध्ययनसूत्र में आज भी लोगे लिंगपाओयणे ' के रूप में उनका मुक्त स्वर मुखरित है । वे देश कालानुसार प्रज्ञा के आधार पर निर्णय लेने की सिफारिश करते हैं । आगे चलकर अनेक जगह वे स्वयं वस्त्रधारी स्थावरकल्पी मुनि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं | उपासकदशांग और विपाकसूत्र आदि मेरी उक्त स्थापना के साक्षी हैं । गौतम का यह समय पर लिया गया निर्णय ही पार्श्वसंघ और महावीरसंघ को, कुछ समय के लिए, एक धारा का रूप दे सका । यह परिवर्तन का चक्र आगे भी उत्तरोत्तर चलता रहा। अधिक तो नहीं कुछ उदाहरण उपस्थित किए देता हूँ । देवर्द्धिगणी का साहस निशीथसूत्र के अनुसार भिक्षु के लिए लिखना वर्जित है | लगभग एक हजार वर्ष तक इसीलिए आगम लिखे नहीं गए । किन्तु देवर्द्धिगणी ने आगमों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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