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________________ ४४ चिंतन की मनोभूमि नहीं, भविष्य में भी हजारों वर्षों तक इसी प्रकार महकाती रहेगी। महापुरुषों के जीवन की सुगन्ध को न दिशा ही अविच्छिन्न कर सकती है, और न काल ही। जिस प्रकार पुण्डरीक श्वेत होता है, उसी प्रकार भगवान का जीवन भी वीतराग-भाव के कारण पूर्णतया निर्मल श्वेत होता है। उसमें कषाय-भाव का जरा भी रंग नहीं होता। पुण्डरीक के समान भगवान् भी नि:स्वार्थभाव से जनता का कल्याण करते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की सांसारिक वासना नहीं होती। कमल अज्ञान अविस्था में ऐसा करता है, जबकि भगवान् ज्ञान के विमल प्रकाश में निष्काम भाव से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। यह कमल की अपेक्षा भगवान् की उच्च विशेषता है। कमल के पास भ्रमर ही आते हैं, जबकि तीर्थङ्करदेव के आध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध से प्रभावित होकर विश्व के भव्य प्राणी उनके चरणों में उपस्थित हो जाते हैं। कमल की उपमा का एक भाव और भी है। वह यह है कि भगवान् संसार में रहते हुए भी संसार की वासनाओं से पूर्णतया निर्लिप्त रहते हैं, जिस प्रकार पानी से लबालब भरे हुए सरोवर में रहकर भी कमल पानी से लिप्त नहीं होता। कमलपत्र पर पानी की एक भी बूंद अपनी रेखा नहीं डाल सकती। यह कमल की उपमा आगम-प्रसिद्ध उपमा है। गन्धहस्ती : । भगवान् पुरुषों में श्रेष्ठ गन्ध-हस्ती के समान हैं। सिंह की उपमा वीरता का सूचक है, गन्ध का नहीं और पुण्डरीक की उपमा गन्ध का सूचक है, वीरता का नहीं। परन्तु गन्धहस्ती की उपमा सुगन्ध और वीरता दोनों की सूचना देती है। गन्धहस्ती एक महान् विलक्षण हस्ती होता है। उसके गन्धस्थल से सदैव सुगन्धित मद-जल बहता रहता है और उस पर भ्रमर-समूह गूंजते रहते हैं। गन्धहस्ती की गन्ध इतनी तीव्र होती है कि युद्धभूमि में जाते ही उसकी सुगन्धमात्र से दूसरे हजारों हाथी त्रस्त होकर भागने लगते हैं, उसके समक्ष कुछ देर के लिए भी नहीं ठहर पाते। यह गन्ध-हस्ती भारतीय साहित्य में बड़ा मंगलकारी माना गया है। यह जहाँ रहता है, उस प्रदेश में अतिवृष्टि और अनावृष्टि आदि के उपद्रव नहीं होते। सदा सुभिक्ष रहता है, कभी भी दुर्भिक्ष नहीं पड़ता। . तीर्थकर भगवान् भी मानव-जाति में गन्धहस्ती के समान हैं। भगवान् का प्रताप और तेज इतना महान् है कि उनके समक्ष अत्याचार, वैर-विरोध, अज्ञान और पाखण्ड आदि कितने ही भयंकर क्यों न हों, ठहर ही नहीं सकते। चिरकाल से फैले हुए मिथ्या विश्वास, भगवान् की वाणी के समक्ष सहसा छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, सब ओर सत्य का अखण्ड साम्राज्य स्थापित हो जाता है। भगवान् गन्धहस्ती के समान विश्व के लिए मंगलकारी हैं। जिस देश में भगवान् का पदार्पण होता है, उस देश में अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि किसी भी प्रकार के उपद्रव नहीं होते। यदि पहले से उपद्रव हो भी रहे हों, तो भगवान् के पधारते ही सब-के-सब पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। समवायांग-सूत्र में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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