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________________ तीर्थङ्कर ४३ निर्भय रहता है, कोई भी पशु वीरता में उसकी बराबरी नहीं कर सकता, उसी प्रकार तीर्थङ्कर देव भी संसार में निर्भय रहते हैं, कोई भी संसारी व्यक्ति अपने आत्म-बल और तपस्त्याग सम्बन्धी वीरता की बराबरी नहीं कर सकता । सिंह की उपमा देने का एक अभिप्राय और भी हो सकता है। वह यह है कि संसार में दो प्रकृति के मनुष्य होते हैं - एक कुत्ते की प्रकृति के और दूसरे सिंह की प्रकृति के । कुत्ते को जब कोई लाठी मारता है, तो वह लाठी को मुँह में पकड़ता है और समझता है कि लाठी मुझे मार रही है। वह लाठी मारने वाले को नहीं काटने दौड़ता, लाठी को काटने दौड़ता है। इसी प्रकार जब कोई शत्रु किसी को सताता है, तो वह सताया जाने वाला व्यक्ति सोचता है कि यह मेरा शत्रु है, यह मुझे तंग करता है, मैं इसे क्यों न नष्ट कर दूँ ? वह उस शत्रु को शत्रु बनाने वाले अन्तर्मन के विकारों को नहीं देखता, उन्हें नष्ट करने की बात नहीं सोचता। इसके विपरीत, सिंह की प्रकृति लाठी पकड़ने की नहीं होती, प्रत्युत लाठी वाले को पकड़ने की होती है । संसार के वीतराग महापुरुष भी सिंह के समान अपने शत्रु को शत्रु नहीं समझते, प्रत्युत उनके मन में स्थित विकारों को ही शत्रु समझते हैं। वस्तुत: शत्रु को पैदा करने वाले मन के विकार ही तो हैं। अतः उनका आक्रमण व्यक्ति पर न होकर व्यक्ति के विकारों पर होता है । अपने दया, क्षमा आदि सद्गुणों के प्रभाव से वे दूसरों के विकारों को शान्त करते हैं। फलत: शत्रु को भी मित्र बना लेते हैं । तीर्थङ्कर भगवान् उक्त विवेचन के प्रकाश में पुरुष - सिंह हैं, पुरुषों में सिंह की वृत्ति रखते हैं । पुरुषवर पुण्डरीक : तीर्थङ्कर भगवान् पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल के समान होते हैं । भगवान् पुण्डरीक को कमल की उपमा बड़ी ही सुन्दर दी गई है। पुण्डरीक श्वेत कमल का नाम है। दूसरे कमलों की अपेक्षा श्वेत कमल सौन्दर्य एवं सुगन्ध में अतीव उत्कृष्ट होता है । सम्पूर्ण सरोवर एक श्वेत कमल के द्वारा जितना सुगन्धित हो सकता है, उतना अन्य हजारों कमलों से नहीं हो सकता। दूर-दूर से भ्रमर - वृन्द उसकी सुगन्ध से आकर्षित होकर चले आते हैं, फलत: कमल के आस-पास भँवरों का एक विराट् मेला-सा लगा रहता है और इधर कमल बिना किसी स्वार्थभाव के दिन-रात अपनी सुगन्ध विश्व को अर्पण करता रहता है; न उसे किसी प्रकार के बदले की भूख है, और न ही कोई अन्य वासना । चुप-चाप मूक सेवा करना ही कमल के उच्च जीवन का आदर्श है। तीर्थङ्करदेव भी मानव - सरोवर में सर्वश्रेष्ठ कमल माने गये हैं । उनके आध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध अनन्त होती है। अपने समय में वे अहिंसा और सत्य आदि सद्गुणों की सुगन्ध सर्वत्र फैला देते हैं। पुण्डरीक की सुगन्ध का अस्तित्व तो वर्तमान कालावच्छेदेन ही होता है; किन्तु तीर्थङ्करदेवों के जीवन की सुगन्ध तो हजारों-लाखों वर्षों बाद भी आज भक्त जनता के हृदयों को महका रही है। आज ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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