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________________ १०२ उपन्यास। वैदिक और बौद्ध विद्वानोंने किया है। उन पारिभाषिक शब्दोंका व्यवहार जैन आगममें नहीं है । इससे फलित यह होता है कि आगमवर्णन किसी लुप्त प्राचीन परंपराका ही अनुगमन करता है। यद्यपि आगमका अंतिम संस्करण विक्रम पांचवी शताब्दीमें हुआ है तब भी इस विषयमें नई परंपराको न अपना कर प्राचीन परंपराका ही अनुसरण किया गया जान पडता है। जैनागम चरकसंहिता तकशास उपायहदय न्यायसूत्र - - १. यापक १. भाविद्धदीर्घसूत्र- १. अविज्ञातार्थ १. अविज्ञात १. अविज्ञातार्थ संकुलैाक्यदण्डकैः। २. अविहान २. अज्ञान २. अविज्ञान २. अज्ञान २. सापक १.प्रतिष्ठापना ३. व्यंसक १.वाक्छल १.अविशेषखण्डन- १. अविशेषसमाजाति. १. लषक २.सामान्याल २. सामान्यष्छल ४. आहरण १.अपाय २. उपाय ३. सापनाकर्म १. खापना २. परिहार १. प्रत्युत्पनलिनाशी १. प्रतिज्ञाहानि १. प्रतिज्ञाहानि - १. प्रतिज्ञाहानि ४. आहरणदेश १. अनुशास्ति २. उपालम्भ १. उपालम्भ १. उपालम्भ - १. उपालम्म २. बहेतु २. हेत्वाभास २. हेत्वाभास २. हेत्वाभास १. पृच्छा १. अनुयोग १. प्रश्नबाहुल्यमुत्तराल्पता २. प्रभाल्पतोचरवाहुल्य ।।।।। ४. बाहरणदोष १.वर्मयुक्त - २. प्रतिलोम १ विरुद्धवाक्यदोष - ३. वाल्मोपनीत - १. दुरुपनीत १ विरुद्धवाक्यदोष - १ युक्तिविरुद्ध ४. उपन्यास १. तदस्तूपन्यास १ प्रतिष्टान्तखण्डन १ प्रतिदृष्टांतसमदूषण १ प्रतिष्टान्तसमाजाति २. तदन्यवस्तूपन्यास - ३. प्रतिनिभोपन्यास १ सामान्यच्छल १ अविशेषखण्डन १ विशेषसमाजाति २ सामान्यच्छल ४ हेतूपन्यास १ अनुयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001047
Book TitleNyayavatarvartik Vrutti
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorShantyasuri, Dalsukh Malvania
PublisherSaraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages525
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Philosophy, P000, & P010
File Size11 MB
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