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________________ ग्रन्थकारोल्लेख धवलाकार ने जिस प्रकार अपनी इस विशाल धवला टीका में कुछ ग्रन्थों के नामों का उल्लेख करते हुए उनके अवतरणवाक्यों को लिया है तथा जैसा कि ऊपर के विवेचन से स्पष्ट हो चुका है, ग्रन्थनामनिर्देश के बिना भी उन्होंने प्रचुर ग्रन्थों के अन्तर्गत बहुत-सी गाथाओं व श्लोकों आदि को इस टीका में उद्धृत किया है, उसी प्रकार कुछ ग्रन्थकारों के भी नाम का निर्देश करते हुए उन्होंने उनके द्वारा विरचित ग्रन्थों से प्रसंगानुरूप गाथाओं आदि को लेकर धवला में उद्धृत किया है । कहीं-कहीं उन्होंने मतभेद के प्रसंग में भी किसी किसी ग्रन्थकार के . नाम का उल्लेख किया है । यथा १. आर्यनन्दी - महाकर्मप्रकृतिप्राभृत के अन्तर्गत चौबीस अनुयोगद्वारों में अन्तिम 'अल्पबहुत्व' अनुयोगद्वार है । वहाँ 'कर्मस्थिति' अनुयोगद्वार के आश्रय से धवलाकार ने कहा है कि महावाचक आर्यनन्दी 'कर्मस्थिति' अनुयोगद्वार में सत्कर्म को करते हैं । इसका अभिप्राय यह दिखता है कि आर्यनन्दी के मतानुसार २२ वें 'कर्मस्थिति' अनुयोगद्वार में सत्कर्म की प्ररूपणा की गयी है । इसके पूर्व उस 'कर्मस्थिति' अनुयोगद्वार के प्रसंग में धवला में यह कहा गया है कि यहाँ दो उपदेश हैं—नागहस्ती क्षमाश्रमण जघन्य और उत्कृष्ट स्थितियों के प्रमाण की प्ररूपणा को कर्मस्थिति प्ररूपणा कहते हैं, किन्तु आर्यमक्षु क्षमाश्रमण कर्मस्थितिसंचित सत्कर्म की प्ररूपणा को कर्मस्थिति प्ररूपणा कहते हैं । इन दो उल्लेखों में से प्रथम जिस सत्कर्म की प्ररूपणा का अभिमत आर्यनन्दी का कहा गया है, उसी सत्कर्म की प्ररूपणा का अभिमत दूसरे उल्लेख में आर्यमक्षु का कहा गया है । इससे यह सन्देह उत्पन्न होता है कि क्या आर्यनन्दी और आर्यमक्षु दोनों एक ही हैं या भिन्न हैं । धवला में आगे आर्यनन्दी का दूसरी बार उल्लेख आर्यमंक्षु के साथ इस प्रकार हुआ है— "महावाचयाणमज्जमंखुखमणाणमुवदेसेण लोगे पुणे आउसमं करेदि । महावाचयाण १. कम्मट्ठिदि अणियोगद्दारे तत्थ महावाचया अज्जणंदिणो संतकम्मं करेंति । महावाचया (?) पुण द्विदिसंतकम्मं पयासंति । -- धवला, पु० १६, पृ० ५७७ २. जहष्णुक्कस्सट्ठिदीणं पमाणपरूवणा कम्मट्ठिदिपरूवणे ति णागहत्थिखमासमणा भति । अज्जमंखुखमासमणा पुण कम्मट्ठिदिसंचिदसंतकम्मपरूवणा कम्मट्ठदिपरूवणेत्ति भणंति । धवला, पु० १६, पृ० ५१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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