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________________ विशेषता यह रही है कि धवला में जहाँ उदाहरण उद्धत गाथाओं के आश्रय से दिए गये हैं वहाँ अनुयोगद्वार में वे सूत्र के ही द्वारा दिये गये हैं।' ५. धवला में नाम के ये दस भेद प्रकट किये गये हैं-- गोण्यपद, नोगौण्यपद, आदानपद, प्रतिपक्षपद, अनादिसिद्धान्तपद, प्राधान्यपद, नामपद, प्रमाणपद, अवयवपद और संयोगपद ।' इन दस नामों का उल्लेख अनुयोगद्वार में भी थोड़े-से क्रमभेद के साथ किया गया है।' विशेष इतना है कि अनुयोगद्वार में नाम-उपक्रम के प्रसंग में एक-नाम, दो-नाम व तीननाम आदि का क्रम से विचार करते हुए (सूत्र २०८-६३) अन्तिम दस-नाम के प्रसंग में उन दस नामों का निर्देश किया गया है, जिनका उल्लेख धवला में ऊपर नाम के दस भेदों के रूप में हुआ है । अनुयोगद्वारगत उन एक-दो आदि नामों का विचार धवला में नहीं किया गया है। ___ इन दस नामों का स्पष्टीकरण धवला और अनुयोगद्वार दोनों ग्रन्थों में उदाहरणपूर्वक किया गया है। ___ इनमें कुछ के उदाहरण भी दोनों ग्रन्थों में समान हैं । जैसे--प्राधान्यपद और अनादिसिद्धान्तपद आदि में। ___ दोनों ग्रन्थों में समान रूप से संयोगपद के ये चार भेद निर्दिष्ट किये गये हैं-द्रव्यसंयोग, क्षेत्रसंयोग, कालसंयोग और भावसंयोग । ६. घवला में प्रमाणउपक्रम के ये पांच भेद बतलाये हैं-द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र प्रमाण, कालप्रमाण, भावप्रमाण और नयप्रमाण ।६ अनुयोगद्वार में उसके ये चार ही भेद निर्दिष्ट किये गये हैं-द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण । इनके साथ वहाँ पाँचवें भेदभूत नयप्रमाण को नहीं ग्रहण किया गया है। धवला में उन प्रमाणभेदों का विवेचन जहाँ संक्षेप से किया गया है वहां अनुयोगद्वार में उनमें प्रत्येक के अन्तर्गत अनेक भेदों के साथ उनकी प्ररूपणा विस्तार से की गई है। ७. वक्तव्यता के तीन भेद जैसे धवला में निर्दिष्ट किये गये हैं वैसे ही उक्त तीन भेदों का निदश अनुयोगद्वार में भी उसी रूप में है। यथा-स्वसमयवक्तव्यता, परसमयवक्तव्यता और तदुभय (स्व-परसमय) वक्तव्यता। ८. अर्थाधिकारउपक्रम के विषय में दोनों ग्रन्थों में कुछ भिन्नता रही है यथा १. धवला पु० १, पृ० ७३ और अनुयोगद्वार सूत्र २०३ [१-३] २. धवला पु० १, पृ० ७४ व पु० ६, पृ० १३५ ३. अनुयोगद्वार, सूत्र २६३ ४. धवला पु० १, पृ०७४-७६ व पु० ६, पृ० १३५-३८ और अनुयोगद्वार सूत्र २६४-३१२ ५. धवला पु० १, पृ० ७७-७८ और पु० ६, पृ० १३७-३८ तथा अनुयोगद्वार सूत्र २७२-८१ ६. धवला पु० १, पृ० ८० ७. अनुयोगद्वार, सूत्र ३१३ ८. धवला पु० १, १०८० व अनुयोगद्वार सूत्र ३१४-५२० ६. धवला पु० १, पृ० ८२ व पु० ६, पृ० १४० तथा अनुयोगद्वार सूत्र ५२१-२४ २७२ / षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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