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________________ उपक्रम, निक्षेप, नय और अनुगम के भेद से चार प्रकार का निर्दिष्ट किया गया है। इस प्रकार उपर्युक्त उपक्रम आदि चार भेदों का उल्लेख धवला और अनुयोगद्वार दोनों में सर्वथा समान है।' २. धवला में यहीं पर आगे उपक्रम के इन पांच भेदों का निर्देश किया गया है-आनुपूर्वी, माम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार।' ____ अनुयोगद्वार में उपक्रम के जो छह भेद निर्दिष्ट किये गये हैं उनमें पाँच तो वे ही हैं जिनका उल्लेख धवला में किया गया है, छठा 'समवतार' यह एक भेद वहाँ अधिक है जो धवला में नहीं उपलब्ध होता । विशेष इतना है कि धवला में यहाँ इस प्रसंग में 'उक्तं च' इस सूचना के साथ कहीं अन्यत्र से यह एक प्राचीन गाथा उद्धृत की गई हैं: तिविहा य आणुपुठवी दसहा णामं च छठिवहं माणं । वत्तव्वदा य तिविहा तिविहो अत्याहियारो वि ।। यह गाथा और इसमें निर्दिष्ट आनुपूर्वी आदि के भेदों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि धवलाकार के समक्ष ऐसा कोई प्राचीन ग्रन्थ रहा है, जिसमें उपर्युक्त आनुपूर्वी आदि का विशद विचार किया गया है। ३. उक्त गाथा के अनुसार आगे धवला में आनुपूर्वी के ये तीन भेद निर्दिष्ट किये गये हैंपूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और यथातथानुपूर्वी। इन तीनों को वहाँ उदाहरणपूर्वक स्पष्ट किया गया है। ___अनुयोगद्वार में आनुपूर्वी के नामानुपूर्वी आदि दस भेद निर्दिष्ट किये गये हैं। (सूत्र ६३) उनका क्रम से निरूपण करते हुए आगे उनमें औपनिधिकी द्रव्यानपूर्वी के तीन भेद किये गये हैं-पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। इनमें पूर्व के दो भेद तो वे ही हैं, जिनका ऊपर धवला में उल्लेख है । तीसरा भेद यथातथानुपूर्वी के स्थान में यहाँ अनानुपूर्वी है ।६ ४. पूर्वानुपूर्वी और पश्चादा नुपूर्वी के स्पष्टीकरण में जिस प्रकार धवला में ऋषभादि तीर्थंकरों का उदाहरण दिया गया है उसी प्रकार अनुयोगद्वार में भी आगे उत्कीर्तनानुपूर्वी के तीन भेदों के अन्तर्गत पूर्वानुपूर्वी और पश्चादानुपूर्वी के स्पष्टीकरण में उन्हीं ऋषभादि तीर्थकरों का उदाहरण दिया गया है। १. धवला पु० १, पृ० ७२ (आगे पु० ६, पृ० १३४ पर भी ये भेद द्रष्टव्य हैं) और अम. सूत्र ७५ पृ० ७२ २. धवला पु० १, पृ० ७२ व पु० ६, पृ० १३४ ३. अनुयोगद्वार, सूत्र ६२ ४. धवला पु. १, पृ० ७२ और पु० ६, पृ० १४०, पु० (6 में 'तिविहो' के स्थान में 'विविहो' पाठ है, तदनुसार वहाँ 'अत्थाहियारो अणेयविहो' ऐसा कहा भी गया है।) ५. धवला पु० १, पृ० ७३ ६. अनुयोगद्वार सूत्र १३१ (आगे इन तीन भेदों का उल्लेख यथाप्रसंग कई सूत्रों में किया गया है। जैसे-सूत्र १३५,१६०,१६८,१७२,१७६,२०१ [१], २०२[१], २०३[१] इस्मादि । षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / २७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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