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________________ ३ ६ १२ धर्मामृत (अनगार) सद्विद्याविभवैः स्फुरन् धुरि गुरूपास्य जितैस्तज्जुषां, दोःपाशेन बलात् सितोऽपि रमया बध्नन् रणे वैरिणः । आज्ञैश्वर्यमुपागतस्त्रिजगतीजाग्रद्यशश्चन्द्रमा, देहेनैव पृथक् सुतः पृथुवृषस्यैकोऽपि लक्षायते ॥ ३५ ॥ तज्जुषां - सद्विद्याविभवभाजां सित:-बद्धः, रमया - लक्ष्म्या, पृथुवृषस्य – विपुल पुण्यस्य पुंसः, लक्षायते - शतसहस्रपुत्रसाध्यं करोतीत्यर्थः ॥ ३५॥ ३६ अथ गुणसुन्दरा दुहितरोपि पुण्यादेव संभवन्तीति दृष्टान्तेन स्पष्टयतिकन्यारत्नसृजां पुरोऽभवदिह द्रोणस्य धात्रीपतेः, पुण्यं येन जगत्प्रतीतमहिमा द्रष्टा विशल्यात्मजा । क्रूरं राक्षसचक्रिणा प्रणिहितां द्राग् लक्ष्मणस्योरसः, शक्ति प्रास्य यया स विश्वशरणं रामो विशल्यीकृतः ॥३६॥ द्रोणस्य -- द्रोणधननाम्नः । राक्षसचक्रिणा - रावणेन ॥३६॥ अथ पुण्योदयवर्तिनां कर्मायासं प्रत्यस्यति - गुरुओं की सेवासे उपार्जित समीचीन विद्याके विलाससे जो विद्याके वैभवसे युक्त ज्ञानी जनों के मध्य में उनसे ऊपर शोभता है, जो लक्ष्मीके बाहुपाशसे बलपूर्वक बद्ध होने पर भी युद्ध में शत्रुओं को बाँधता है, आज्ञा और ऐश्वर्यसे सम्पन्न है, जिसका यशरूपी चन्द्रमा तीनों लोकों में छाया हुआ है, तथा जो पितासे केवल शरीर से ही भिन्न है, गुणोंमें पिताके ही समान है, पुण्यशाली पिताका ऐसा एक भी पुत्र लाखों पुत्रोंके समान होता है ||३५|| गुणोंसे शोभित कन्याएँ भी पुण्यसे ही होती हैं, यह दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट करते हैंइस लोक में कन्यारूपी रत्नको जन्म देनेवालोंमें राजा द्रोणका पुण्य प्रधान था जिन्होंने विशल्या नामक पुत्रीको जन्म दिया जिसकी महिमा जगतमें प्रसिद्ध है । जब राक्षसराज रावणने क्रूरतापूर्वक लक्ष्मणकी छाती में शक्तिसे प्रहार किया तो उस विशल्याने तत्काल ही उस शक्तिको निरस्त करके जगत् के लिए शरणरूपसे प्रसिद्ध रामचन्द्रको अपने लघुभ्राता लक्ष्मणकी मृत्युके भयसे मुक्त कर दिया ||३६|| विशेषार्थ - यह कथा रामायण में आती है । पद्मपुराणमें कहा है कि राम और रावणके युद्ध में रावणने अपनी पराजयसे क्रुद्ध होकर लक्ष्मण पर शक्तिसे प्रहार किया । लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर गये । मूर्छित लक्ष्मणको मरे हुए के समान देखकर रामचन्द्र शोकसे free होकर मूर्छित हो गये । मूर्छा दूर होने पर लक्ष्मणको जिलानेका प्रयत्न होने लगा । इतने में एक विद्याधर रामचन्द्रजी के दर्शनके लिए आया और उसने लक्ष्मणकी मूर्छा दूर होने का उपाय बताया कि राजा द्रोणकी पुत्री विशल्याके स्नानजलसे सब व्याधियाँ दूर हो जाती हैं । तब विशल्याका स्नानजल लेनेके लिए हनुमान आदि राजा द्रोणके नगर में गये । राजा द्रोणने विशयाको लक्ष्मणसे विवाहनेका संकल्प किया था । अतः उसने विशल्याको ही हनुमान आदिके साथ भेज दिया । विशल्याको देखते ही शक्तिका प्रभाव समाप्त हो गया और लक्ष्मणकी मूर्छा दूर हो गयी । रामचन्द्रजीकी चिन्ता दूर हुई । अतः ऐसी कन्या भी पुण्यके प्रतापसे ही जन्म लेती है । जिनके पुण्यका उदय है उनको कामके लिए श्रम करनेका निषेध करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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