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________________ विषय-सूची ६५२ कृतिकर्मके योग्य आसन ६१८ परमागमके व्याख्यानादिमें उपयोग लगानेका वन्दनाके योग्य देश ६१९ माहात्म्य कृतिकर्मके योग्य पीठ ६२० प्रतिक्रमणका माहात्म्य ६४८ वन्दनाके योग्य तीन आसन ६२० प्रतिक्रमण तथा रात्रियोग स्थापन और समापन आसनोंका स्वरूप ६२० विधि ६४८ वन्दनाका स्थान विशेष ६२२ प्रातःकालीन देववन्दनाके लिए प्रोत्साहन ६४९ जिनमुद्रा और योगमुद्राका लक्षण ६२२ कालिक देववन्दनाकी विधि ६५० वन्दनामुद्रा और मुक्ताशुक्ति मुद्राका स्वरूप ६२२ कृतिकर्मके छह भेद मुद्राओंका प्रयोग कब ६२३ जिनचैत्य वन्दनाके चार फल आवर्तका स्वरूप ६२३ कृतिकर्मके प्रथम अंग स्वाधीनताका समर्थन ६५३ हस्त परावर्तनरूप आवर्त ६२५ देववन्दना आदि क्रियाओंके करनेका क्रम ६५३ शिरोनतिका लक्षण ६२५ कायोत्सर्गमें ध्यानकी विधि ६५४ चैत्यभक्ति आदिमें आवर्त और शिरोनति वाचिक और मानसिक जपके फल में अन्तर ६५६ स्वमत और परमतसे शिरोनतिका निर्णय ६२७ पंचनमस्कारका माहात्म्य ६५६ प्रणामके भेद ६२८ एक-एक परमेष्ठीकी भी विनयका अलौकिक कृतिकर्म के प्रयोगकी विधि ६२९ माहात्म्य ६५७ वन्दनाके बत्तीस दोष ६३० कायोत्सर्गके अनन्तर कृत्य ६५८ कायोत्सर्गके बत्तीस दोष आत्मध्यानके बिना मोक्ष नहीं ६५८ कायोत्सर्गके चार भेद और उनका इष्ट समाधिकी महिमा कहना अशक्य ६५९ अनिष्ट फल ६३५ देववन्दनाके पश्चात् आचार्य आदिकी वन्दना ६५९ शरीरसे ममत्व त्यागे बिना इसिद्धि नहीं ६३७ धर्माचार्यकी उपासनाका माहात्म्य ६६० कृतिकर्मके अधिकारीका लक्षण ६३७ ज्येष्ठ साधुओंकी वन्दनाका माहात्म्य ६६० कृतिकर्मकी क्रमविधि ६३८ प्रातःकालीन कृत्यके बादकी क्रिया ६६० सम्यक् रीतिसे छह आवश्यक करनेवालों के अस्वाध्याय कालमें मुनिका कर्तव्य चिह्न मध्याह्न कालका कर्तव्य ६६१ षडावश्यक क्रियाकी तरह साधुको नित्य क्रिया प्रत्याख्यान आदि ग्रहण करनेकी विधि ६६१ भी विधेय ६४० भोजनके अनन्तर ही प्रत्याख्यान ग्रहण न भावपूर्वक अर्हन्त आदि नमस्कारका फल ६४० करनेपर दोष निःसही और असहीके प्रयोगकी विधि ६४० भोजन सम्बन्धी प्रतिक्रमण आदिकी विधि ६६२ परमार्थसे निःसही और असही ६४१ दैवसिक प्रतिक्रमण विधि आचार्यवन्दनाके पश्चात देववन्दनाकी विधि नवम अध्याय रात्रिमें निद्रा जीतने के उपाय स्वाध्यायके प्रारम्भ और समापनकी विधि ६४२ जो स्वाध्याय करने में असमर्थ है उसके लिए स्वाध्यायके प्रारम्भ और समाप्तिका कालप्रमाण ६४३ देववन्दनाका विधान स्वाध्यायका लक्षण और फल ६४३ चतुर्दशीके दिनकी क्रिया विनयपूर्वक श्रुताध्ययनका माहात्म्य उक्त क्रियामें भूल होनेपर उपाय जिनशासनमें ही सच्चा ज्ञान अष्टमी और पक्षान्तकी क्रियाविधि साधुको रात्रिके पिछले भागमें अवश्य करणोय ६४६ सिद्ध प्रतिमा आदिकी वन्दनाकी विधि ६६१ ६६३ ६६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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