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________________ ५४ धर्मामृत ( अनगार ) ५७८ स्वाध्यायके लाभ स्तुतिरूप स्वाध्यायका फल पञ्च नमस्कारका जप उत्कृष्ट स्वाध्याय व्युत्सर्गके दो भेद निरुक्तिपूर्वक व्युत्सर्गका अर्थ उत्कृष्ट व्युत्सर्गका स्वामी अन्तरंग व्युत्सर्गका स्वरूप नियतकाल कायत्यागके भेद प्राणान्त कायत्यागके तीन भेद ‘कान्दी आदि दुर्भावना संक्लेशरहित भावना भक्त प्रत्याख्यानका लक्षण व्युत्सर्ग तपका फल चार ध्यान तप आराधना ५८६ ५४३ ५८६ ५८९ ५९२ अष्टम अध्याय षडावश्यकका कथन ज्ञानीका विषयोपभोग ज्ञानी और अज्ञानी के कर्मबन्धमें अन्तर आत्माके अनादि प्रमादाचरणपर शोक व्यवहारसे ही आत्मा कर्ता रागादिसे आत्मा भिन्न है आत्मा सम्यग्दर्शन रूप आत्माकी ज्ञानरति भेदज्ञानसे ही मोक्षलाभ शुद्धात्माके ज्ञानकी प्राप्ति होने तक क्रियाका पालन आवश्यक विधिका फल पुण्यास्रव पुण्यसे दुर्गतिसे रक्षा निरुक्तिपूर्वक आवश्यकका लक्षण आवश्यकके भेद सामायिकका निरुक्तिपूर्वक लक्षण भाव सामायिकका लक्षण नाम सामायिकका लक्षण स्थापना सामायिकका लक्षण द्रव्य सामायिकका लक्षण क्षेत्र सोमायिकका लक्षण ५३७ भावसामायिकका विस्तार ५७४ ५३८ भावसामायिक अवश्य करणीय ५७७ सामायिकका माहात्म्य / ५४१ चतुविशतिस्तवका लक्षण ५७९ ५४१ नामस्तवका स्वरूप ५८१ ५४२ स्थापनास्तवका स्वरूप ५८३ ५४२ द्रव्यस्तवका स्वरूप ५८३ ५४२ क्षेत्रस्तवका स्वरूप कालस्तवका स्वरूप ५४६ भावस्तवका स्वरूप ५८७ व्यवहार और निश्चयस्तवके फलमें भेद ५८८ ५४८ वन्दनाका लक्षण - ५८८ ५४८ विनयका स्वरूप और भेद वन्दनाके छह भेद र ५९० ५५० श्रावक और मुनियों के लिए अवन्दनीय ५९१ वन्दनाकी विधि, काल * पारस्परिक वन्दनाका निर्णय ५९३ ___सामायिक आदि करने की विधि ५९३ प्रतिक्रमणके भेद ५९४ अन्य भेदोंका अन्तर्भाव ५९५ ५५६ प्रतिक्रमणके कर्ता आदि कारक ५९७ प्रतिक्रमणकी विधि ५९८ ५५९ नीचेकी भूमिकामें प्रतिक्रमण करनेपर उपकार ५६० न करनेपर अपकार ५६१ समस्त कर्म और कर्मफल त्यागकी भावना ६०१ प्रत्याख्यानका कथन प्रत्याख्येय और प्रत्याख्याता ६०८ ५६३ प्रत्याख्यानके दस भेद ५६४ प्रत्याख्यान विनययुक्त होना चाहिए ५६५ कायोत्सर्गका लक्षण आदि ६१० ५६६ कायोत्सर्गके छह भेद ५६७ कायोत्सर्गका जघन्य आदि परिमाण ६१२ ५६८ दैनिक आदि प्रतिक्रमण तथा कायोत्सर्गों में ५७० उच्छवासोंकी संख्या ६१३-१४ ५७१ दिन-रातमें कायोत्सगोंकी संख्या ५७१ नित्य-नैमित्तिक क्रियाकाण्डसे परम्परा मोक्ष ६१६ ५७२ कृतिकर्म करने की प्रेरणा ६१७ ५७३ नित्य देववन्दनामें तीनों कालोंका परिमाण ६१८ ६०९ ६०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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