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________________ चतुर्थ अध्याय 'मूलाग्रपर्वकन्दोत्थाः स्कन्धबीजसमुद्भवाः। स्तथानन्तकायाः प्रत्येककायिकाः॥ त्वग्मूलकन्दपत्राणि प्रवालः प्रसवः फलम् । स्कन्धो गुच्छस्तथा गुल्मस्तृणं वल्ली च पर्व च ॥ शवलं पणकः किण्वं कवकः कुहणस्तथा । बादराः सूक्ष्मकायास्तु जलस्थलनभोगताः । गूढसन्धिशिरापर्वसमभङ्गमहीरुहम् । छिन्नोद्भवं च सामान्यं प्रत्येकमितरद्वपुः ।। वल्लीवृक्षतृणाद्यं स्यादेकाक्षं च वनस्पतिः । परिहार्या भवन्त्येते यतिना हरिताङ्गिनः॥ [ मूलोत्थाः येषां मूलं प्रादुर्भवति ते च हरिद्रार्द्रकादयः । पर्वोत्थाः इक्षुवेत्रादयः। कन्दोत्थाः कदलीपिण्डालुकादयः । स्कन्धोद्भवाः शल्लकोपोलिभद्रादयः । बीजोद्भवाः यवगोधूमादयः । सम्मूछिमाः १२ मूलाधभावेऽपि येषां जन्म स्वयोग्यपुद्गलोपादानकारणात् । दृश्यते हि शृङ्गाच्छरो गोमयाच्छालूकं बीजमन्तरेणोत्पत्तिमत् । एते वनस्पतिजातिबीजोद्भवा सम्मूछिमा चेति द्विधा स्यादित्युक्तं प्रतिपत्तव्यम् । अनन्तकायाः अनन्तः साधारणः कायो येषां ते साधारणाङ्गाः स्नुहीगुडुच्यादयः । प्रत्येककायिकाः एकमेकं प्रति प्रत्येकं १५ पृथक् भिन्नो भिन्नः कायो येषामस्ति ते पूगनालिकेरादयः । उक्तं च एकमेकस्य यस्याङ्गं प्रत्येकाङ्गः स कथ्यते । साधारणः स यस्याङ्गमपरैर्बहुभिः समम् ॥ [ अमि. पं. सं. १।१०५ ] प्रत्येकका भिन्न-भिन्न शरीर जिनका होता है उन वनस्पतियोंको प्रत्येककायिक कहते हैं जैसे नारियल, सुपारी आदि । कहा भी है-'जिस एक वनस्पतिका एक शरीर होता है उसे प्रत्येकशरीर कहते हैं। और बहुत-से जीवोंका एक ही सामान्य शरीर हो तो उसे साधारण शरीर कहते हैं। ऊपर जो मूल आदिसे उत्पन्न होनेवाली वनस्पति कही है वह अनन्तकाय भी होती है और प्रत्येककाय भी होती है। तथा सम्मूच्छिम भी दोनों प्रकारकी होती हैं। दोनों ही प्रकारकी वनस्पतियोंके अवयव इस प्रकार हैं-छाल, पुष्प, गुच्छा, झाड़ी। पुष्पके बिना उत्पन्न होनेवाले फलोंको फल कहते हैं। जिसके पुष्प ही होते हैं फल नहीं उन्हें पुष्प कहते हैं। जिसकेपत्र ही होते है फल या पुष्प नहीं होते उसे पत्र कहते हैं। पानीपर जमी काईको शैवल कहते हैं । गीली ईटोंकी भूमि और दीवारोंपर जो काई लग जाती है उसे पणक कहते हैं । वर्षाऋतुमें जो कुकुरमुत्ते उगते हैं उन्हें किण्व कहते हैं। शृंग वनस्पतिसे उत्पन्न हुए जटाकार अंकुरोंको कवक कहते है। भोजनपर आयी फुईको कुहण कहते हैं। पृथिवीकायिक आदि पाँचों बादरकाय भी होते हैं और सूक्ष्मकाय भी होते है। जिनकी सन्धि, सिरा पर्व अदृश्य होते हैं, तोड़ने पर समभंग होता है तथा मध्यमें तार आदि लगा नहीं रहता, जो काटनेपर पुनः उग आती है वह सब साधारण वनस्पति है, इसके विपरीत प्रत्येक वनस्पति है। लता, वृक्ष, तृण आदि एकेन्द्रिय वनस्पति है । यतिको इन सबका बचाव करना चाहिए । आगमसे १. 'मूलाग्रपर्वकन्दोत्थाः स्कन्धबीजरुहास्तथा। सम्मूछिनश्च हरिताः प्रत्येकानन्तकायिकाः।।'-तत्त्वार्थसार ६६ २. पारिभ-भ. कु. च. । ३. च्छारो-भ. कु. च.। vandana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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