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________________ ३ ६ १२ १५ १८ ५४ धर्मामृत (अनगार ) अथ जन्मानन्तरभाविवलेशं भावयति — जातः कथंचन वपुर्वहनधमोत्थदुःखप्रदोच्छ्वसनदर्शनसु स्थितस्य । जन्मोत्सवं सृजति बन्धुजनस्य यावद् .यास्तास्तमाशु विपदोऽनुपतन्ति तावत् ॥ ६६॥ यास्ताः --- प्रसिद्धाः फुल्लिकान्त्रा गोपिकाप्रभूतयः ॥ ६६ ॥ अथ बाल्यं जुगुप्सते --- यत्र क्वापि धिगत्रपो मलमरुन्मूत्राणि मुञ्चन् मुहु यं किचिद्ववनेऽर्पयन् प्रतिभयं यस्मात् कुतश्चित्पतन् । लिम्पन् स्वाङ्गमपि स्वयं स्वशकृता लालाविलास्योऽहिते, व्याषिद्धो हतवत् रुवन् कथमपि च्छिद्येत बाल्यग्रहात् ॥६७॥ यत्र क्वापि — अनियतस्थानशयनासनादी । यत्किचित् - भक्ष्यमभक्ष्यं वा । यस्मात् कुतश्चित् - पतद्भाजनशब्दादेः । पतन् गच्छन् । (स्व) शकृता - निजपुरीषेण । अहिते - मृद्भक्षणादो । छिद्येतवियुज्येत मुक्तो भवेदित्यर्थः ॥ ६७ ॥ अथ कोमारं निन्दति - धूलीधूसरगात्रो धावन्नवटाइमकण्टकादिरुजः । प्राप्तो हसत्सहेलकवर्गममर्षन् कुमारः स्यात् ॥६८॥ अवट: - गर्तः | अमर्षन् - ईर्ष्यन् ॥६८॥ आगे जन्मके पश्चात् होने वाले कष्टोंका विचार करते हैं किसी तरह महान् कष्टसे जन्म लेकर वह शिशु शरीर धारण करने के परिश्रम से उत्पन्न हुई दुःखदायक श्वास लेता है उसके देखनेसे अर्थात् उसे जीवित पाकर उसके मातापिता आदि कुटुम्बी उसके जन्मसे जब तक आनन्दित होते हैं तब तक शीघ्र ही बच्चों को होने वाली प्रसिद्ध व्याधियाँ घेर लेती हैं ॥६६॥ Jain Education International बचपनकी निन्दा करते हैं बचपन में शिशु निर्लज्जतापूर्वक जहाँ कहीं भी निन्दनीय मल-मूत्र आदि बार-बार करता है । कोई भी वस्तु खानेकी हो या न हो अपने मुखमें दे लेता है । जिस किसी भी शब्द आदि से भयभीत हो जाता है । अपनी टट्टीसे स्वयं ही अपने शरीरको भी लेप लेता है । मुख लारसे गन्दा रहता है। मिट्टी आदि खानेसे रोकने पर ऐसा रोता है मानों किसीने मारा है। इस बचपन रूपी ग्रहके चक्करसे मनुष्य जिस किसी तरह छूट पाता है ||६७ || आगे कुमार अवस्थाका तिरस्कार करते हैं— बचपन और युवावस्थाके बीच की अवस्थावाले बालकको कुमार कहते हैं । कुमार रास्तेकी धूल से अपने शरीरको मटीला बनाकर दौड़ता है तो गड्ढे में गिर जाता है या पत्थर से टकरा जाता है या तीखे काँटे वगैरह से बिंध जाता है । यह देखकर साथमें खेलनेवाले बालक हँसते हैं तो उनसे रूठ जाता है ॥ ६८॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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