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________________ ( ४ ) को पूजा करने में तकलीफ एवं आशातना हुआ करती थी । इस पर श्री संघ ने करीबन ३४ वर्ष पूर्व यह निर्णय किया था कि मन्दिरजी में तीनकोठरियां और बना दी जायं । कि मूल गंम्भारे की अधिक मूर्तियाँ वहाँ विराजमान करदी जायं कि पूजा की सुविधा रहे और आशातना भी मिट जाय । इन विचारों को कार्यरूप में परणित कर कोठरियां तैयार करवा । जब सब काम तैयार हो गया तो खरतरों ने जयपुर से दादाजी का पगलिया मंगवा कर एक कोठरी में दादाजी का पगलिया ' यह बात उठाई कि स्थापित किया. जायगा । श्रीसंघ ने कहा कि दादावाड़ी में दादाजी के पगलिये हैं, यति रूपचन्दजी के बनाये हुए मन्दिर में दादाजी के पगलिये हैं, फिर यहाँ पगलिया क्यों रक्खा जाता है ? जैसे संघ में खरतर गच्छ है वैसे ही तपागच्छ, कमलागच्छ, पायचन्द्रगच्छ आदि भी हैं और इस प्रकार भी अपने अपने श्राचायों के पगलिये मन्दिर में रख देंगे तब तो मन्दिर पगलियों से ही भर जायगा ? अतएव मन्दिर में किसी. भी गच्छ के आचार्य का पगलिया स्थापित न होगा । यदि आपको पगलिया स्थापित ही करना है तो दादावाड़ी में स्थापित कर दीजिये और इस कार्य में सकल संघ शामिल रहेगा । इस समय काफी वाद विवाद हुआ परन्तु दोनों तरफ के लोग अच्छे समझदार थे । खरतरगच्छ वालों ने भी संघ में फूट डाल पगलिया स्थापित करना ठीक नहीं समझा, कारण आखिर पगलियों की सेवा पूजा करने वाला तो श्री संघ ही है, खैर । अन्त में दोनों पार्टी इस निर्णय पर आई कि जहाँ तक सकल श्री संघ सम्मत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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