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________________ करना ही है । इस पर भी सागरजी फूले नहीं समाते हों तो यह उस के जातित्व के संस्कार की ही बात है। ___ सागरजी या आपके भक्तों ने पयूषणों की क्षमापना पत्रिका छपवाई है जिसमें नाम तो दिया है नागौर श्रीसंघ का और प्रभावना में खास रूरतरगच्छ वालों के घर भी टाल दिये । जिस पत्रिका में कई तपस्या करने वालों के नाम भी छपवाये हैं पर उसमें कई कवलागच्छ, तपागच्छ, पायचन्दवालों के नाम भी लिख डाले हैं। कई एकों ने तो सागरजी का मुंह तक भी नहीं देखा है । पर्युषणों के पहले कई बाहर की परिचित औरतों ने आकर किसी ने एक पाटिया बना कर चांदी वगैरह का स्वस्तिक बनाया होगा किसी ने चांदी की कटोरियां दी होंगी । उसको भी पयूषणों की पत्रिका में छपवा कर अपना महत्व बढ़ाने की कोशिश की है । पर वह द्रव्य था किस खाते का यह नहीं लिखा है। लेने वालों के लिए किसी भी खाते का क्यों न हो उनका क्या गया ? कुछ न कुछ पाया है। अरे खरतरो ! जब जैनसंघ में सोने के थाल और मोतियों की कण्डीएं अपने स्वधर्मी भाइयों को अर्पण की गई हैं तो तुम्हारी यह तुच्छ चीजें किस गिनती में हैं । आज तुम क्या लंका को मूंदड़ी बतलाने की कोशिश कर रहे हो । यदि तुम्हारा इष्ट सब बातें छापे में छपवाने का ही है तो नागौर में श्रीसंघ की मालकी का एक उपासरा खरतरों ने बेच कर टका कर लिया उसको भी पत्रिका में छपवा देना था कि समाज में किसी भाग्यशाली ने तो धर्मस्थान करवाया था और कई ऐसे भी जन्म गये हैं कि उस धर्मस्थान को बेच कर उस मुहल्ले से जैन धर्म का नाम ही उठा दिया और मुसलमान द्वारा कई सागरों की पूजा का उल्लेख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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