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________________ (६६) आचमन (पानी पीना, कुल्ला करना आदि) एवं स्वास प्रस्वास लेना और चलना फिरना एवं कृषि आदि कार्यों में जिनमें कि अपरिहार्य हिंसा हैं उनमें दोष नहीं। निचोड़ यह निकला कि जो नित्य कर्तव्य कर्म है और जिससे अपनी तथा दूसरे की मात्मा को भी कल्याण हो, उसमें यदि कोई अनात (अनजान) हिंसा भी हो जाय तो दोष नहीं, क्योंकि एक तो जानबूझ कर वह हिंसा नहीं हुई और दूसरा उस कर्म में (जिसमें वह अनजान हिंसा हुई है) अधिक पुण्य के होने से कोई भी पाप भागी नहीं हो सकता है। .. पहले कहा जा चुका है कि वस्तु के विना भाव उत्पन्न नहीं हो सकता और भाव के बिना दृढ़ भक्ति नहीं हो सकती और हद भक्ति के बिना ईश्वरीय ज्ञान होना उसी तरह असम्भव है जैसे आधार के बिना प्राधेय का स्थिर होना असम्भव है, इसलिये फूल, फल आदि को मूर्ति पर चढ़ाना परम प्रावश्यक है और फूल, फल, धूप, दीप आदि को मूर्ति पर चढ़ाते समय सुचतुर श्रद्धालु प्रास्तिक मूर्ति पूजक लोग प्रत्येक वस्तु को अर्पण करने के समय में निम्न लिखित भावना करते हैं, जैसे "फूल" फूलों को मूर्ति पर चढ़ाने के समय में भक्तिमान पुजारी यह भावना करते हैं कि हे भगवान् ! ये जो फूल हैं, वे कामदेव के बाण (काम के बढ़ाने वाले ) हैं और मैं अनेक जन्मों से सांसारिक विषयों में डूबा हुश्रा हूं आप वीतराग हैं और कामदेव को पराजित किये हैं इसलिये इन फूलों को आपके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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