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________________ (४१) और भी सुनिये कि-"आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब" के बनाये हुये स्वामी दयानन्दजी के "जीवन-चरित्र" के पृष्ठ ३५६ में लिखा है कि-"ईश्वर का कोई स्वरूप नहीं है, परन्तु जो कुछ इस संसार में दृष्टि गोचर हो रहा है वह सव ईश्वर का ही स्वरूप है इससे साफ मालूम होता है कि प्रतिमा भी ईश्वर का ही स्वरूप है क्योंकि जब संसार की सभी वस्तु परमात्मा का रूप है तब परमात्मा के रूप से प्रतिमा अलग रह गई क्या? भार्य-महाराज, जड़ (प्रतिमा) की पूजा करने से चेतन का शान कभी नहीं हो सकता, अतः प्रतिमा पूजा निरर्थक है। दादाजी-पाहजी, आपका जब ऐसा ही ख्याल है तष जड़ घेदों से ईश्वर का ज्ञान नहीं होना चाहिये, मगर आपका दृढ़ विश्वास है कि वेदों से ईश्वर का ज्ञान होता है हम पूछते हैं कि वेद अपने पाप शान कराने में समर्थ है ? या श्रादमी अपनी बुद्धि से छान प्राप्त करता है? यदि आप कहें कि वेद ज्ञान देने में स्वयं समर्थ है तो ऐला कथन कभी सत्य नहीं, क्योंकि जब ऐसा ही हो तो कितने मूर्ख बुक्सेलरों को ईश्वर का ज्ञान हो जाना चाहिये, मगर ऐसा दीखने में एक भी नहीं आता अर्थात् वेद जैले पुस्तकों को अपने पास रखने वाले. अनेक हैं मगर वेद सम्बन्धी शान तो विरक्षा ही किसी पण्डित प्रकाण्ड को होता है। यदि कहें कि अपनी बुद्धि से ज्ञान-प्राप्त होता है तो उस तरह प्रतिमा से भी शान प्राप्त हो सकता है, इसलिये जड़ वेदादि पुस्तकों की तरह मूर्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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