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________________ ( २५) असंभव है, अतः ईश्वर बोध का कार्य में कारणभूत मूर्ति-पूजा को अवश्य करनी चाहिये । काकाजी-महाराज, ईश्वर तो निराकार है, फिर उसकी मूर्ति किसने देखी ? यदि नहीं देखी तो विना देखे उसका बनाना अाकाश कुसुम की तरह असंभव है। दादाजी-ईश्वर निराकार है और साकार भी हैं, उस साकार ईश्वर की मूर्ति प्राचीन मुनि महर्षियों ने देखी, तब से परम्परा लोगों को मूर्ति का बोध होता आ रहा __ है, इसलिये उस मूर्ति के निर्माण में असंभवता कैसी ? काकाजी-महाराज, ईश्वर साकार है, इसमें प्रमाण क्या ? दादाजी-शास्त्र प्रमाण है, सुनो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ गीता. अध्या० ४ श्लो० ७, ८] श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन, इस पृथ्वी पर जब जब धर्म की होनि और अधर्म की वृद्धि होती है,तब तब मैं अपनी योगमाया के द्वारा अपनी आत्मा को प्रगट करता हूं, अर्थात् ईश्वर के विशेष अंशों को लेकर अवतार लेता हूँ। वह मेरा अवतार सजन पुरुषों की रक्षा के लिये होता है, आतताई (दुष्टों) के विनाश के लिये होता है और धर्म की स्थापना के लिये होता है, इस तरह मैं युग युग में प्रगट होता हूं। कोकाजी-महाराज, आपके कहे हुये इन गीता के श्लोकों में जिसको संशय हो या जिसको श्रद्धा नहीं हो तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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