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________________ (१७) इच्छा के अनुसार प्राप्त किया। किन्तु इतना होने पर भी काका कालूराम के मन में पूरी शान्ति नहीं हुई, उनके हृदय में बहुत दिनों की आशङ्काये भरी पड़ी थी, इसलिये अपना अच्छा अवसर जानकर योगीराज से कुछ पूछने के लिये उत्सुक हुए। योगीराज का भाषण समाप्त हो चुका था, इसलिये लोगों के धार्मिक प्रश्नों के समुचित उत्तर देने में समय अनुकूल था। फिर क्या था, समय पाकर काकाजी की तरफ से जन्म भर की जकड़ी हुई, कुटिल प्रश्नों की झडियां लगने लगी-नीचे गौर करके देखियेःकाकाजी-योगीराज के सामने हाथ जोड़ कर महाराज, मुझे श्राप से कुछ प्रश्न पूछना है, श्राशा हो तो पूछू। दादाजी-हर्ष के साथ, आप की जितनी इच्छा हो प्रश्न कर सकते हैं। काकाजी-महाराज, मूर्ति तो जड़ हैं, फिर उस जड़ प्रतिमा की पूजा करने से चैतन ईश्वर का ज्ञान कैसे हो सकता ? दादाजी-सुनोजी, हम आप जो अक्षर लिखते हैं, वे जड़ ही हैं, और अक्षरों के समुदाय वेद शास्त्र श्रादि पुस्तके भी जड़ ही हैं, किन्तु उन जड़ पुस्तकों को अच्छी तरह पढने और मनन करने से चेतन रूप ईश्वर का या व्यक्ति विशेष का ज्ञान हो जाता है, इसलिये जड़ मूर्ति में भक्ति भाव से ईश्वर की पूजा करने से चैतन्य ईश्वर का ज्ञान होता है इस में कुछ भी सन्देह नहीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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