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________________ खुल ही जाता और कोई सच्चरित्र सन्त महात्मा ऊपर ले भले ही कुवेष किये हों मगर अन्दर से उनकी भावना अच्छी हैं, वे सदाचारी हैं, सत्यभाषी हैं, परोपकारी हैं, तत्वज्ञ हैं तो वे दुनियाँ से अवश्य पूजे जाते हैं, इसीलिये महात्मा तुलसीदासजी ने लिखा है किउघरहि अन्त न होइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावण राहू ॥ किये कुवेष साधु सन्मानू । जिमि जग जामवन्त हनुमानू । धर्म-विरोधी जन पूर्व-पुण्य के प्रभाव से अब तक धन दौलत, मित्र, पुत्र, शरीर आदि सुख से मुक्त रहते हैं तब तक धर्म मार्ग की एक भी बात उन्हें अच्छी नहीं लगती। यहाँ तक कि ईश्वर का भजन, पूजन और परोपकार आदि से भी कोसों दूर रहते हैं, मगर जब पाप-कर्म सिर 'पर सवार होकर उन्हें खूब सताता है, तब बगुला भगत बनकर ईश्वर भजन आदि धर्म कार्य को ऊपर से मानते हैं, किन्तु सत्य-भाषी, धर्म-प्रेमी, परोपकारी सजनगण तो सुख में वा दुःख में प्रत्येक अवस्था में ईश्वर को अनन्यभक्ति से भजते हैं और लोक सम्मत शास्त्रीय धर्म-कार्य को करते हैं । -ऊपर की वात काल्पनिक भक्ति और वास्तविक भक्ति का एक अच्छा दृष्टान्त है और महात्मा कबीरदासजी ने अपनी एक साखी में इसी बात को लिखा है कि दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय ॥ काका कालराम कई दिनों तक और भी पाखण्डपने को अपनाते हुए बगुला भगत ही बने रहे। फिर जब कुछ और समय बीता तो कालूराम के पूर्व पुण्यों की छाया उनके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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