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________________ (२) केवल वन की वायु में ही विलीन कर देते हैं, उन बगीचों के फूलोंसे जो अपनी सुगन्धसे मनुष्यों के प्रशंसापात्र हैं किसी भी प्रकार कम हैं ? ___ इसी प्रकार वे महापुरुष जो चुपचाप दूरदर्शितासे अत्यावश्यक ठोस ( Solid ) कार्य करने से मनुष्यों में विख्यात नहीं हो सके क्या उन सांसारिक प्रशंसापात्र व्यक्तियों से कम हैं ? नहीं नहीं कदापि नहीं । जब ऐसे मनुष्यों की संख्या कम नहीं है जो प्रशंसा के अयोग्य हो कर भी उसके पात्र कहे जाते हैं तो क्या ऐसे सत्पुरुषों का मिलना दुर्लभ है जो संसारी प्रशंसा से सदा दूर भागते हैं। किसी विद्वान ने यथार्थ ही कहा है कि पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः । स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । नादंति सत्वं खलु वारवाहाः । परोपकाराय सतां विभूतयः । अर्थात् नदी अपने जल को आप नहीं पीती, वृक्ष अपने फलों को आप भक्षण नहीं करते और मेघजल वर्षा अन्न उपजा भाप नहीं खाते । तात्पर्य यह है कि नदी का जल वृक्षों के फल और मेघों की वर्षा सदा दूसरों के ही काम आती है। इससे सिद्ध होता है कि सच्चे महापुरुषों की विभूति स्वधर्म, स्वदेश की सेवा और परोपकार के लिये ही होती है । ऐसे ही श्रेष्ठ परोप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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