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________________ . (५६) १००० नित्य स्मरण पाठमाला । १००० भाषण संग्रह प्रथम भाग । १००० भाषण संग्रह दूसरा भाग । १००० स्तवन संग्रह चौथा भाग । दूसरीबार । ७००० कुल सात हजार प्रतिएँ । स्थानकवासी साधु मोतीलालजी को जैन दीक्षा देकर उनका नाम मोतीसुन्दर रक्खा गया था। पयूषण पर्व में यहाँ नागोर, खजवाना, रूण और कुचेरे आदि के कई श्रावक श्राए थे । पाठ दिन पूजा प्रभावना स्वामीवात्सल्य आदि धार्मिक कृत्यों का सिलसिला जारी रहा । उस समय की भामदनी से प्रापश्री के चातुर्मास के स्मरणार्थ चांदी का कलश श्री भण्डार में अर्पण किया गया था । फलोधी से विहारकर आप रूण, खजवाना, मेड़ता फलोधी, पीसागन पधारे वहाँ बहुत से भव्योंको वासक्षेपपूर्वक समकितादि की प्राप्ति कराई तथा श्री रत्नोदय ज्ञान पुस्तकालय की स्थापना करवाई वहाँ से माप श्री अजमेर पधारे। रास्ते में अनेक श्रावकों की श्रद्धा सुधारकर उन्हें मूर्तिपूजक बनाया। ऐतिहासिक खोज के सम्बन्ध में प्रापश्री राय बहादुर पं. गौरीशंकरजी भोझा से मिले । आवश्यक वार्तालाप बहुत समय तक हुई। फिर जेठाणा की ओर विहारकर कई श्रावकों को आपने मूर्तिपूजक बनाया । पुन: पीसांगन, गोविन्दगढ, कुडकी होकर कैकीन पधारे । वहाँ उपदेश दे श्रापश्रीने देवद्रव्य की ठीक व्यवस्था करवाई । फिर प्रापश्री कालू, बलून्दा, जेतारण, खारीया, हो बीलाडे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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