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________________ (५८) नुकतिपाकादि भोजन विविध प्रकारी। . पुन्य पवित्र जीमे नर अरु नारी ॥ श्री ज्ञान० ॥ २७ ॥ संघ चतुर्विध मिलके खीचंद जावे । पूजाका वर्षे रंग गवैया गावे । प्रभु यात्रा करतो भानन्द अधिको आवे । शासन उन्नति प्रभावना दे पावे । __स्वामिवात्सल्य जीमे सदा सुखकारी || श्री ज्ञान०॥ २८॥ धर्म उत्साही वीर पुरुष कहवावे । जो उठावे काम विजय वह पावे । जैनधर्मका डंका जोर सवाया। विघ्नसं तेषी देख देख शरमाया । जयवन्त सदा जिन शासन है जयकारी।। श्री ज्ञान०॥२९॥ कृपा करके तीन चौमासा कीना । . ज्ञान ध्यानका लाभ बहुत जन लीना । गुणी जनोंका गुण भव्य जन गावे । शुभ भावोंसे गोत्र तीर्थकर पावे । बनि रहै शुभ दृष्टि सुनो उपकारी। श्री ज्ञान० ॥ ३०॥ संवत् उगणीसे गुणियासी सुखकारी । कातिक शुद पंचमी बुधवार है भारी। कवि कुशल इम जोड़ लावणी गावे । फलोधीमें सुन श्रोता सब हरषावे। . चरणों में वन्दना होजो वारम्वारी ॥ श्री ज्ञान०॥ ३१ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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