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________________ इस चातुर्मास में आपने इस भाँति तपश्चर्या की थी जो सदा की तरह ही थी। पचोला १, अतुम ३ तथा इसके अतिरिक्त कई उपवास भी आपश्रीने किये थे। जितना परिश्रम और प्रेम मुनिश्री का साहित्य प्रचारकी ओर है उतना शायद ही और किसी मुनिराज का इस समय होगा। आप के द्वारा जितना साहित्य प्रथित होता है वह सब का सब साधारण योग्यतावाले श्रावक के भी काम का होता है । यह आपके साहित्य की विशेषता है । अपने पांडित्य के प्रदर्शनार्थ आप कभी ग्रंथ को क्लिष्ट नहीं बनाते । इस वर्ष इतना साहित्य मुद्रित हुआ । १००० शीघ्रबोध भाग ८ वाँ। १००० स्तवन संग्रह भाग २ रा दूसरी बार। १००० नंदीसूत्र मूलपाठ। १००० लिङ्गनिर्णय बहत्तरी,, १००० मेझरनामा हिन्दीसंस्करण। १००० स्तवनसंग्रह भा.३रा,, २००० तीननिर्मायक उत्तरोंकाउत्तर। १००० अनुकंपा छत्तीसी ,, १००० मोशियाँ ज्ञान भण्डार १००० प्रश्नमाला की सूची। १००० स्तवन संग्रह भाग १ १००० तीर्थ यात्रा स्तवन । चतुर्थ बार। १००० प्रतिमा छत्तीसी चतुर्थ वार । ५००० सुबोध नियमावली । १००० दान छत्तीसी दूसरी बार । १००० शीघ्रबोध भाग १ दूसरी बार । - २१००० सब प्रतिएँ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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