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________________ (१४) कुचेरा, रूण, बडलू, बनाड, जोधपुर तथा सलावास आदि के लोगों को उपदेशामृत का पान कराते हुए पाली पहुंचे। इस पर्यटन में भी आप एकान्तर तपस्या के साथ साथ ज्ञानाभ्यास भी निरन्तर करते रहे। वि. सम्वत् १९६६ का चातुर्मास (जोधपुर)। आपनीने अपना तीसरा चातुर्मास मारवाड़ राज्य की राजधानी जोधपुर में बिताया । फूलचंदजी के पास ही आप रहे । उधर ज्ञानाभ्यास तो चल ही रहा था। जिस जिस क्रम से आपने श्रुतामृत का आस्वादन किया, आप की अभिलाषा अध्ययन की ओर बढ़ती गई। आपने इस वर्ष के चातुर्मास में निम्न प्रकार से स्वाध्याय किया । ४० थोकड़े कंठाग्र तो आपने सदा की तरह किये ही परन्तु इस वर्ष आपने श्रुतज्ञान के अध्ययन में विशेष प्रवृत्ति रक्खी । नन्दीजी सूत्र आपने सहज ही में कण्ठस्थ कर लिया । क्यों नहीं ! जिस व्यक्ति पर इस प्रकार सरस्वती की महान् कृपा होती है वह अव्वल दर्जे का सौभाग्यशाली ज्ञान प्राप्त करने के प्रयत्न में क्यों नहीं तल्लीन रहे ! इतना ही नहीं इस के अतिरिक्त सूयघडांग सूत्र, ठाणायांग सूत्र, समवायंग सूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र, निशीथ सूत्र, व्यवहारसूत्र, वृहत्कल्पसूत्र, दशश्रुत स्कंध सूत्र और आवश्यक सूत्र का अध्ययन (बाचना ) किया सो अलग। धन्य ! आपकी मानसिक शाक्ति को। जिस प्रकार आपने इस वर्प ज्ञानाराधन में कमाल कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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