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________________ (११) विक्रम सं. १९६४ का चातुर्मास [ सोजत ।] सब से प्रथम का चातुर्मास आपने सोजत में किया । माप स्वामी फूलचंदजी के साथ में थे। सब से प्रथम आपने यही आवश्यक समझा कि जब तक जैन साहित्य का ज्ञान नहीं होगा तब मुझ से उपदेश देने का कार्य कैसे हो सकेगा । इसी हेतु से श्राप साहि त्य के अध्ययन में प्रारम्भ से ही तत्पर हुए । वैसे आप पर सरस्वती की बचपन से ही विशेष कृपा थी, जिस बात को आप पढ़ते थे वह आप को शीघ्र याद हो जाती थी परिभाषा तथा नित्य के व्यवहार के लिये आपने सब से प्रथम थोकड़े याद करने शुरु किये । बातकी बात में आपको ४० थोकड़े+ स्मरण हो गये । तत्पश्चात् आपने सूत्र याद करने प्रारम्भ किये । प्रखर स्मरण शक्ति के कारण आपने बृहत्कल्प सूत्र सहज ही में मुखाम कर लिया। केवल पढ़ने की ओर ही आपकी रुचि हो यह बात नहीं थी, आप इस मर्म को भी अच्छी तरह जानते थे कि कठोर कमों का क्षय बिना तपस्या किये होना असम्भव है अतएव आपने अपने सुकुमार शरीर की परवाह न कर तपस्या करनी प्रारम्भ की जो इस प्रकार थी। अठाई १, पञ्चोपवास १, तेले ८, + जैन शास्रों में जो तत्वज्ञान का विषय है उसको सरल भाषामें अथित कर एक प्रकरण : निबन्ध ) बनाके उसे कण्ठस्थ कर लेना फिर उसपर खूब मनन करना उसका नाम स्थानकवासियोंने थोकड़ा रक्खा गया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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