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________________ (११) ट्रेनमा एक पारसना मोबेदजी एटले धर्मगुरु मने मळ्या तेनी साथेनी वातचीतमा “हुं अमारा धर्मनी उंडो अभ्यासी छु, अमारा धर्मपुस्तकोमां कोईपण जगोए मांसाहार खावानुं लख्यु नथी; हुं जोके जन्मथी मांसाहारी हतो, पण ज्यारथी मारी खात्री थई के पारसीधर्ममां ते वात मुद्दल लखी नथी, ते वखतथी मारो मांसाहार तरफ तिरस्कार थयो अने अन्नफळ तरफ वत्ति बंधाई; पण मारे ए संबंधमां बहु मुश्केलीओ वेठवी पडेली. घरमां कोईने अन्नफळनो खोराक आवडे नहीं, घरनां तमाम माणसो विरुद्ध छतां रसोईन काम में जाते करी, मारी मुश्केलीओ वटावी, अने आजे मारां छोकरां छैयां अन्नाहार खातां थयां छे. अमारी नातमां मांसाहारनो परिचय वधारे होवाथी, अमे कोई सगा के दोस्तने त्यां जमवा न जईए तो नात बहार जेवा लागीए छीए." बीजा बे पारसी ग्रहस्थोए वातचीतमां जणाव्यु के, “अमो लोकोने जोके मांसाहार तरफ तिरस्कार छे, अने वेजीटेबल तरफ प्रीति छे, पण जो अमने अन्नफळाहारनी जोगवाई मळे तो अमारा घरमांथी ए चीज काढी नाखवाने अमे बहुज इंतेजार छीए." मारा एक हिंदु मित्रे तेने रसोईया पुरा पाडवानुं वचन आप्यु. आवी रीते ए लोकोनी अन्नफळ तरफ लागणी छतां, केटलाक संजोगोने लईने तेओ पोतानो खोराक छोडी शकता नथी. तेना संबंधमां ते लोकोने माटे सगवडवाळा रस्ताओ करवाथी, घणा माणसो मांसाहार तजी अन्नफळ खाता थशे, अने तेने लीधे हजारो अवाचक प्राणीओनुं रक्षण थशे, अने तमारा कर्तव्य प्रमाणे तेथी तमे मोटुं पुन्य मेळवशो. युरोपथी आवती जणशोना संबंधमां राखवानी तपास. हालना काळमां केटलीक चीजो युरोप विगैरे देशोमांथी आवे छे, ते जानवरने मारीने तेना अवयवोनी बनाववामां आवे छे. तेना संबंधमां आपणा लोकोनी पुरेपुरी माहिती नहीं होवाथी तेवी चीजो वापरे छे. हजारो पक्षीओना भोग बदल पीछाओनी टोपाओ बनाववामां आवे छे, कचकडा जेवी चीजो काचबा जेवा प्राणीने मारी बनाववामां आवे छे, रेशम जेवी चीज कोशेटा नामना जीवने गरम पाणीमां बोळी, तेमाथी रेशम काढी बनाववामां आवे छे, मीणबत्ती जेवी चीजो चरबीमाथी बनाववामां आवे छे, साबुओमां. चरबी नांखवामां आवे छे. आवी चीजो प्राणीना आंगोपांगनी बने छे, एम जो आपणा लोकोना समजवामां खरेखरं आवे तो, तेथी आपणा लोको एवी तीव्र लागणीवाळा छे के, तेनो एकदम त्याग करे. तेवा विषयोमां आपणा लोकोने पुरेपुरी माहिती रहे, तेवा उपायो योजवा. मारा मित्र मी. मोहनदास करमचंद गांधी जे साउथ आफ्रिकामां आपणा इंडियनोना प्रतिनिधी छे, अने जेणे आपणा इंडियनोना हितने माटे पोतानु तन, मन, धन अर्पण कर्यु छे, ते एक वखत कलकत्ता तरफ मुसाफरी करता, त्यारे एक रेशम बनाववा- कारखानुं जोवा गया. जीवता कीडाओने उकळता पाणीमां नांखी तेमाथी रेशम बनाववामां आवे छे, एवी क्रिया जोई तेमने एटलो बधो तिरस्कार छुट्यो के, तेमणे पोते तथा पोताना घरमां रेशमी चीजो वापरवानो त्याग कीधो. __एवी रीते ज्यारे आपणे आपणा लोकोने जीवहिंसा- खरं स्वरूप समजावीशु, त्यारे ते लोको पोतानी भेळे ए वस्तुओनो त्याग करशे,अने तेने लईने हजारो प्राणीओनुं रक्षण थशे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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