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________________ ( १६४ ) उपर कहेला सोळ संस्कार श्री भगवानने तेमनां मातापिताए कर्या छे, अने पोते पण आचरयां छे. कां छे के: विवहारो बहु बलवं जं वंदई केवली वीछ उमत्थं अठ्ठाकम्मं भुंजई तो बीबहारं प्रमाणंतु ॥ १ ॥ एटले व्यवहार पण प्रमाण छे उपर कहेला सोळ संस्कार मध्ये मुख्य संस्कार हालन समयमां विवाहसंस्कार गणाय छे. जैन शास्त्रकारे विवाह बे प्रकारना कह्या छे: - एक आर्य अने बीजो अनार्य, आर्यना चार भेद - ब्राह्म, आर्ष, प्राजापत्य अने दैव. अनार्यना चार भेद - असुर, राक्षस, पैशाच अने गांधर्व, अनार्य विवाह अप्रमाण होवाथी शास्त्रकारे तेने क्रिया कही नथी. हवे रह्या बाकी आर्य विवाहना चार भेद; ते मध्येथी हालना काळमां त्रण प्रकारना विवाह बंध छे. वर्तमान समयमां फक्त प्राजापत्य विवाह चालु छे. मातापिताओ स्नानालंकृत करीने कन्यानुं दान करे छे, तेने प्राजापत्य विवाह कहे छे. कोईपण मंगलिक कार्यारंभ करती वखते प्रथम आपणा कुळदेवतानुं स्मरण तथा स्तुति, तथा आपणा आराध्य देवनुं चितवन करवुं जोईए छे. तेम जैन शास्त्रकारे प्रथम विवाहना आरंभ विमळवाहन चक्षुस्मान ईत्यादिक सत्य कुलकरनी स्थापना करी छे. कार्यारंभ करवामां पण अमो अमारा पवित्र शास्त्र ने एक बाजु मुकी दई पुराणने मान आपी, ते प्रमाणे प्रथम वक्रतु महाकाय सूर्यकोटी सममजा ईत्यादिक स्तुति करीने, गजानन महाराजनी स्थापना करीए छीए. हवे जरा आगळ जतां ते कार्यनो संकल्प आवे छे तेमां प्रथम एवं कहेलुं लागे छे के: विष्णो आज्ञा प्रर्वतमानस्य || एटले प्रथमथीज विष्णुनी विचार करो के जन्मथी तो जैन अने जीन आज्ञा प्रमाणे चाल्युं आटला पुरती मात्र जीन आज्ञा अमान्य अने विष्णुनी आज्ञा प्रमाण हवे विष्णुनी आज्ञा जो मान्य करी त्यारे जैनत्व क्यां गयुं; कारणके शास्त्रकारे कां छे के 'आणाथम्मं पणामसिद्ध' एटले आज्ञा मानवी एज धर्मनुं मुख्य लक्षण छे, अने विवाह जेवा मांगळिक कार्यमां तो वीतरागनी आज्ञा तो अमान्य थई. हवे कोई कहेशे के अमे तो बेउनी आज्ञा मान्य करीशुं, वीतरागनी अने विष्णुनी; परंतु विचार करो के एक सेवकपर वे मालेकनो हुकम चाली शकतो नथी, अगर एक देशनी प्रजापर बे राजानो अमल चालतो नथी, त्यारे बे धर्माध्यक्षनी आज्ञा केव रीते मनाय? हवे आगळ जतां तेज संकल्पमां आवे छे के:- मम आत्मानः पुराणोक्त शास्त्रोक्त फलमापत्यर्थम् । एटले मारा आत्माने पुराण तथा शास्त्रमां कह्या मुजब फळ प्राप्त थाओ. केवी आश्चर्यनी वात छे, के सर्वज्ञप्रणीत परम पवित्र आगमोनां फळ मेळवनारे पुराणना फळ तरफ ईच्छा राखवी, एटले चिंतामणी रत्न छोडीने काचना टुकडा ग्राह्य करवा जेवुं छे. आज्ञा मान्य करी. हवे एतो आद्य कर्तव्य; परंतु आपणे एकादुं नानुं अगर मोटुं व्रत या पचखाण लईए छीए ते वेळाए एम प्रतिज्ञा करीए छीए के, आव्रत हुं अरिहंतनी शाक्षीथी, सिद्धनी शाक्षीथी, साधुनी साक्षीथी लउंछु, एटले- अरीहंत शीख्खे सीद्ध शिख्खे, साहु शीखवे, एवी रीते पाठ उचारीए छीए; अने लग्न जेवो परम पवित्र अने जन्मपर्यंत रहेनारो, जेमां धर्म अर्थ काम विगेरे साध्य करवामां परस्पर स्त्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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