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________________ (१९९) आदर सत्कार नहि होय ऐसे जीवनका अपयसका पुंज बने शीश पडे धूल है, राज्यमै भी उनकी सुनवाई कहो कैसे होय धर्मसे प्रतिकूलताके दुनियां प्रतिकूल है. आटलुंज बोली हवे हुं मारुं भाषण समाप्त करी, आप सर्व बांधवोनी क्षमा मांगुं छं के, माराथी कोई प्रकारनो अविनय थयो होय किंवा भूल थई होय, तो क्षमा करशो." सुरतवाळा वैद्य तलकचंद ताराचंदनुं भाषण. " मेहरबान प्रमुख साहेब अने सद्ग्रहस्थो! वखत घणोज थोडो छ, अने विषय विस्तीर्ण होवाथी विषयनी प्रस्तावना नहीं लंबावतां, हुं मारा विषयनी शरुआत करुछु. ग्रहस्थो! श्लोक. यः प्राप्य दुःप्राप्य मिदं नरत्वं, धर्म न यत्नेन करोति मूढः। क्लेशप्रबद्धो मसलब्ध मब्धेः, चिंतामणि पायइतु प्रमादात् ॥१॥ अर्थात्-दुःप्राप्य एवो जे मनुष्यजन्म पामीने मूढ पुरुषो प्रमादथी जेम चिंतामणी रत्नने फेंकी दे छे, तेम धर्मने यत्नथी नहीं पाळनार पोताना जन्मने निरर्थक बनावी दे छे. वळी का छे के 'धर्मयौवहतो हंति धर्म रक्षति रक्षति' अर्थात् धर्मने जे हणे छे ते पोतेज हणाय छे; अने धर्मनं जे रक्षण करे छे ते पोतानुज रक्षण करे छे. मित्रो! हवे जे दरखास्त मी. परमारे मुकी छे, अने जेने प्रॉफेसर नथुए टेको आप्यो छे, तेने अनुमोदन आप, ए मारुं काम छे. ए दरखास्तमां जे सात कलम लखेली छे, ते साते कलम उपर एकज माणसथी विवेचन थई शके नहीं; परंतु जुदा जुदा बोलनारा तरफथी जुदां जुदां अनुमोदनमां विषयो चर्चाववा ए आपणो खास हेतु छे. जे वातने अनुसरीने आपणामां "विवाहादिक्रिया" करवामां आवे छे, तेने माटे कांईक कहेवानुं छे. संसारसमुद्रनी पार जवा माटे त्रण पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम ) सिद्ध करवामां सहायभूत एवी जे पुरुषने पनिरुप सहायक जेने नीतिवान पुरुषो धर्मपनिनु उपनाम आपी गया छे, ते धर्मपत्नि धर्मनी विधीथी जोडायली होवी जोईए; कारणके जे धर्मनी प्राप्तिने माटे पतिपत्निनो मेळाप योजवामां आवे छे, ते धर्मनां मूळतत्वो ते विधिमां समायलां होय, तोज ते मूळमांथी वृक्ष उत्पन्न थई, तेनी शाखाओ वधी, सुखरुप फळ फुलथी खीली, छेटे अखंडानंद जे मोक्ष तेना सुखने पामी शकाय छे. हवे विचार करवानो के आपणा लोको वचला काळी परचक्रने आधीन थवाथी, जैनी विधीने पडती मुकी ब्राह्मणी विधि प्रमाणे लग्न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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