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________________ ( १२४ ) तिनुं अने जैनोना धार्मिक अने व्यवहारिक उन्नतिनां बीजां कारणोमां साधुओनी स्थिति, साधुओर्नु वर्तन ए मुख्य कारण छे. जो साधुओ गुणी, सरळ, अने यथाविधि चारित्र पाळता होय, तो श्रावकोनी उन्नति थया विना कदी रहेज नहीं. ए बात तो बीन तकरारी छे के धर्मापदेशको पोताना श्रोताजनो उपर घणो काबु धरावे छे, अने जे सुधारो, जे उन्नति धर्मापदेशको एक पळवारमा सहेलाईथी करी शके छे, ते अन्य पुरुषो महा प्रयासे गमे तेवा विद्वान् , हुंशियार होय तोपण हजारो वर्ष सुधी करी शकता नथी. लोकोनी धर्म उपर एवी श्रद्धा होय छे अने धर्मगुरु तरफ एवं मान होय छे के, धर्मने खातर ने धर्मगुरुनी खातर पोतानुं तन, मन, अने धन अर्पण करे छे. प्राचीन अने अर्वाचीन इतिहास तरफ नजर करीए तो ते वातने पुष्टि मळे छे. रोमन केथोलीक धर्मने खातर अने पोपने खातर युरोपमा घणा लोकोए पोताना देहनो भोग आप्यो छे ए वात प्रसिद्ध छे. विलायतमां मेरी क्वीननो राज्य समय पण ए हकीकतने पुष्टि आपे छे. आपणा हिंदुस्तानमां वैष्णवना महाराजना लायबल केसथी आपणे जाणीए छीए के, महाराजो तरफ वैष्णवोनी केवी तीक्ष्ण ने डंडी लागणी होय छे, अने तेओनां वचन उपर पोतानुं सर्वस्व अर्पण करे छे. हवे हुँ तमने धर्मोपदेशकोनां वचनो उपर तेओना भक्तो अने श्रोताजनो, केटला वश ने आधीन होय छे, तेनो दाखलो आघु छु. मारा स्वदेशमा जामनगरमा जुवान पुरुषोना मृत्यु पाछळ खर्च न करवं, ते वाव्रतनी चर्चा उभी थई हती; अंने जुबानोना पाछळ जमवु ए लोहीना कोळीआ खाधा बराबर छे. विगेरे कारणो दर्शावी लोको पासे भाषणो करवामां आव्यां हता, पण तेनु कांई फळ आव्युं नहीं: पण ते समयमां पन्यासजी आनंदविजयजी त्यां पधार्या हता अने तेओना उपदेशथी त्रीस वर्षनानी अंदरनुं खर्च जमवा न जवू, एम घणाओए बंधी लीधी हती, जेथी धारेली नेम घणे दरज्जे अमलमां आवी. दाखला तो अनेक छे, पण आ बाबत तकरारी नथी एटले पुष्टिमां दाखलानी जरूर नथी. हुं आगळ कही गयो ते प्रमाणे महावीरस्वामीना वखतमां श्रावकोनी शुं स्थिति हती ते आपणे जोईए. तेओ धर्म अने व्यवहारमा कुशळ हता, जेना परिणाम तेओ राज्यमां, व्यापारमा अने दरेक बाबतमां अग्रेसर अने मुखी तथा संतोषी हता. आनंद श्रावक अने कामदेव श्रावकनी कथाी एम सिद्ध थाय छे, के तेओ शास्त्र प्रमाणे धर्म पाळता, तेओ सरल मनना अने गुरू प्रत्ये भक्तिवाळा हता, अने पोताना कुटुंबमां सलाहसंपथी वर्तता, तेओ पोताना बस चारसें माणसाना कुटुंब साथे रहेता, अने तेओ तेनुं घणी सारीरीत पोषण करता हता. बीजुं शास्त्रोमांथी जणाय छे के तेओ सार्थवाहनुं काम करता हता, एटले पोते मोटी मुसाफरी माटे जवाने तैयार थता, त्यारे सेंकडो वहाणो तैयार करावी पोताना धर्मबंधुओने पोताना काममा सामेल करी साथै लई जता अने मदद आपता; अने बीजाओने वगर नूरे या कमी नूरे प्रदेशमा धंधो करवा पोतानी जोडे तेडी जता, अने पोताथी बनती मदद करता हता; जेनुं परिणाम ए. आवतुं के लोकोमां आळस, अज्ञानता, कुसंप ने निर्धनताने बदले उद्योग, हुंशियारी, संप, अने समृद्धि वगेरे वधतां जतां हतां. साधुओनी पडती. आ वखत लांबा काळ सुधी चाल्यो, पण पाछळयी केटलाक कारणोने लीधे, साधुओ आचारथी भ्रष्ट थया, अने ज्ञानने बोजारूप गणी दुर्व्यसनमां गुंथाया. धर्मोपदेशकोनी दुर्दशाने जोईने श्रावको पोतानुं खटकर्म भूली गया अने पडती स्थितिमां आव्या. साधुओए पोतानो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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