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________________ (९८) हवे सर्वे जीवोनी रक्षा करवामां प्राणीमात्रनो थतो नाश अटकाववो, तमज प्राणी. मात्रने बंधीखानामांथी मुक्त करवानो समास थाय छे. प्राणीमात्र उपर दया राखवी, तेओनी साथे मैत्रीभाव राखवो अने तेओनी रक्षा करवी, ए दरेक जैनबंधुनुं कर्त्तव्य छे, ए विषय उपर विवेचन करवामां आव्युं छे. दरेक वस्तुने बे बाजु होयछे अने ते दरेकमां न्यूनाधिकपणं होय छे, परंतु दया ए एवी वस्तु छ के जेनी बंने बाजु समतुल्य छे. ए विषे शेक्सपियर कवि ए प्रमाणे कहे छे के दयानो गुण एवो छ के, वगर दबाण करे धीमी वृष्टिनी माफक आसमानमांथी ते नीचे वृष्टि करे छे. दया जे शख्स करे छे तेने सुख थाय छे एटलुज नहीं, पण ते जेना उपर करवामां आवे छे तेने पण सुख थाय छे. ए सर्वमा बलीष्टथी बलीष्टथी छे, राजाना तख्त करतां पण ऊंची पदवी धरावे छे. राजानो राजदंड तेनी दुनियादारीनी सत्ता बतावे छ, जे राजदोर अने अमलथी राजनी भीति अने धास्ती उत्पन्न करे छे; परंतु दया ए राज्यसत्ताथी अधिक छे, ए राजाओना अंतःकरणमां वासो करे छे अने खुद परमात्मानो अंश छे, अने आ पृथ्वी उपरनी सत्ता परमात्माना अंशरुप त्यारे देखाय छे, के ज्यारे न्याय दया मिश्रीत होय छे त्यारे. सदरहु प्रमाणे शेक्सपियर कवि दया संबंधी कहे छे, ते केवळ योग्य छे अने तेथी प्राणीमात्रनी रक्षा करवी ए दरेक जैनबंधुनो धर्म छे. जैनबंधुओ! आपणा लोकोमा वखतोवखत फंडो उभा करी पशुपक्षी आदि प्राणीओने नाशथी बचाववा तथा तेमने बंधीखानेथी छोडववा यत्न थता आवे छे, थाय छे, ने थशे; एटले ए बाबत विषे विशेष बोलवानी आवश्यकता नथी, तोपण एटलं कहेवानी जरुर छे के पशुपक्षी आदि प्राणीओने बंधीखाने नाखनार शख्सोने कोई बीजे धंधे लगाडवा तजवीज थई शके तो वधारे सारं; कारणके आपणा लोको दयाना परिणामथी पशुपक्षी आदि प्राणीओने बंधीखानामांथी पैसा आपी मुक्त करावे छे; परंतु ए धंधो करनारने एक रीते पोताना धंधमां उत्तेजन मळी, फरी ते धंधो करवा तत्पर थाय छे, तेथी बनी शके तो एवा शख्सोने कोई बीजा उद्यममां वळगाडया ए मारा नम्र अभिप्राय प्रमाणे वधारे उचित छे. बीजो विभाग पशुओनी हिंसा थती होय ते योग्य प्रयास लई अटकाववा बाबतनो छे. एनो समास उपर कहेली हकीकतमा आवी जाय छे, तेथी ए विषे विशेष बोलवानी जरूर नथी. त्रीजो विभाग सारा बंधारणथी पांजरापोळ जेवां खातां दरेक स्थळे स्थापवा तथा चलाववा बाबतनो छे. पांजरापोळ याने खोडांढोर खातुं दरेक जैनबंधुनी जाणमां सारी पेठे होवू जोईए. पांजरापोळ स्थापवानो हेतु एवो छ के अशक्त जानवरो, ए जगाए पालनपोषण कर अने तेओनी दुःखी स्थिति निवारण करवं. ए पांजरापोळो माटे आपणा लोको तरफथी तेमज बीजा लोकानी मददथी, स्थळे स्थळे फंडो भेगां करवामां आवे छे, अने पांजरापोळनो कारोबार चलाववामां आवे छे, परंतु जे हेतुथी पांजरापोळ स्थापवामां आवे छे, ते हेतुनो बरोबर अमल थाय छे के नहि, ए दरेक जैनबंधुनी जोवानी फरज छे. पांजरापोळमां अशक्त प्राणीओने घास पूरु पाडवू तेथीज तेनुं संरक्षण थयेलं समजवायूँ नथी; दरदी प्राणीने दवा विगेरेनो बंदोबस्त बराबर थाय छ के नहीं, तेमज तमाम प्राणीओने रहेवानी जग्या सुघड, चोख्खी राखवामां आवे छे के नहि, तेओने आपवामां आवतुं घास किंवा दाणो सारो अपाय छे के नाहि, अने तेओने पीवा माटे पाणी स्वच्छ अने निर्मळ आपवामां आवे छे के गंदु पाणी आपवामां आवे छे, ए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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