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________________ ( ९६ ) तुलसीदास कवि पण कही गया छे के:दया धर्मको मूल है, पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडीए, जबलग घटमें प्रान. शामळभट कवि पण दयानी बाबतमां नीचे प्रमाणे कहे छे: काजळथी काळो कपूत, तनधी वहाली लाज, दया दानथी उजळी, कुळ अजवाळण काज. सदरहु प्रमाणे अहिंसानी बावतमा जुदा जुदा वखते जुदा जुदा महात्माओए, अनेक थो रची एथी थता फायदा बतावी एनी प्रशंसा करेली छे, तो ए विष विशेष दाखला दृष्टांत न आपतां एना नीचे प्रमाणे विभाग करवा हुं इच्छा राखं छु. जीव दयाना मुख्य बे विभाग थई शके छे:१ द्रव्य दया. भाव दया. भावदयाना बे विभाग थई शके छ:--- १ स्वदया. २ पर दया. स्वदयाने माटे एटलंज कहेवानुं छे के दरेक प्राणी पोतानी करणी प्रमाणे फळ भोगवे छे, परंतु तेणे एटलो विचार करवानो छे के आ संसारमा पोतानी वस्तु शुं छे अने पारकी झुं छे, सगासंबंधीनो संबंध स्वार्थी छे के निःस्वार्थ छे, क्षणिक छे के स्थायी छे, अने देह अने आत्मानो धर्म शुं छे, ए बाबतो उपर विचार करी पोतानी इंद्रिओनो निग्रह करी, मनने अंकुशमां लावी पोताना आत्माने परभावमा रमतो खसेडी, स्वभावमां रमण करावq ए स्वदया छे. __ हवे परदयानी बाबतमां आपणा महा मुनिराज महाराजो उपदेश करता आव्या छे, अने दरेक प्राणीना उपर दयानु सिंचन करे छ, एटले ए विषे विशेष न बोलतां एटलुंज कहेवु बस छे, के कोईपण मनुष्य खोटी संगतने लीधे किंवा कर्मोदयने लीधे उन्मार्गे चालतो होय एटले अतिविरुद्ध वर्तणुक करतो होय, तो तेने सदुपदेश दई सुमार्गे चडाववो; अने कदाच तेम न बनी शके तो तेना उपर कोईपण प्रकारनो रोश न राखतां, ते पोतानां पुर्वकर्मनां फळ भोगवे छे एम समजी, तेना उपर दया राखवी. हवे द्रव्यदयाना मुख्य बे विभाग छ:१. मनुष्य प्राणी संबंधे दया. २. पशु पक्षी आदि प्राणीओ संबंधे दया. मनुष्य प्राणी संबंधे दयाना विभाग नीचे प्रमाणे थई शके छे:१. अशक्त मनुष्यपर दया. २. सशक्त मनुष्यपर दया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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