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________________ ( ८६ ) लक्ष आपबुं जोईए. आपणा धर्मनां तत्वो घणा उदार विचारनां छे, स्त्री अने पुरुषने समान हक्कनां गण्यां छे. तीर्थकर भगवाने चतुर्विध संघनी स्थापना करी छे, तेमां साधुसाध्वी श्रावकश्राविका एवो चतुर्विध संघ कह्यो छे. साधुसाध्वी अने श्रावक, एवा त्रण वर्गने शिक्षण अपाय छे अने फक्त श्राविकाने शिक्षण अपातुं नथी, त्यारे त्रिविध संघ थयो कारण स्त्रीओ अभण रहेवाथी मानने कमी पात्र थई, तेथी चतुर्विध संघर्नु एक अंग ओछु थयु. जो आपणे सर्वज्ञ प्रणीत चतुर्विध संघ मानता होईए, तो स्त्रीओने शिक्षण आपी अर्धागनाना पदने पात्र करो. ___ यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमते तत्र देवता । जे ठेकाणे स्त्रीओने मान रहे छे त्यां देवता रममाण थाय छे. देवता रममाण थवाधी बधी बाते मंगळ थाय छे. हवे विचार करोके स्त्रीओने मान केवी रीते अपाय ? मान तो फक्त ज्ञानवान होय तेनेज मळे छे अने स्त्रीओ तो अज्ञान, तेओने मान मळे नहीं, त्यारे जो आपणने निरंतर सुखशांतिनी ईच्छा होय तो स्त्रीओने सुशिक्षित करवी, ए आपणु कर्तव्य छे. कविश्रेष्ठ काळीदास स्त्रीने सचीव, सखी, मीथ एवी पदवी आपे छे, एटले आ गृहरुपी एक राष्ट, तेमा पुरुष ए राजा अने ते राजानो सचीव एटले मंत्री ते पुरुषनी स्त्री. जे राजानो मंत्री सारो भणेलो होय छे, तेनुं राज्य सारी रीते चाले छे अने जेनो मंत्री अभंण अगर अज्ञान होय छे, तेनुं राज्य कदापि पण सारी रीते चाली शकतुं नथी. सारांश ए के जे माणसनी स्त्री अभण छे, तेनी गृहव्यवस्था सारी रही शकती नथी गृहव्यवस्था उत्तम प्रकारे चलाववाने स्त्रीओने शिक्षण अवश्य जोईए, सुशिक्षित स्त्रीओनी संतति पण तेज प्रमाणे बुद्धिमान अने पराक्रमी नीवडे छे, कारणके अल्प वयथीज माताना सहवासथी बाळकोना कोमळ मगजपर तेनुं सारं परिणाम थाय छ; अने मोटी वयमां मळनार शिक्षण करतां पहेलेथीज जे माताना नित्य समागममां उत्तम प्रकारना शिक्षणनी थयेली असर घणी लाभदायक छ; वास्ते प्रत्येक माणसे स्त्रीशिक्षणना काममां आळस छोडी दई मदद करवी. पुरुष वर्गने हाल जे शिक्षण मळे छे ते एकदेशीय छे. हालना समयमां छोकगओने स्कूल तथा कालेजमां जे शिक्षण मळे छे ते आगदी एक देशीय मळे छे; कारणके तेमां धार्मिक तथा नैतिक बाबतपर बीलकुल लक्ष आपवामां आवतुं नथी. बाळकोनां कुमळां मगजपर धर्मशिक्षणनो आरंभथीज बीलकुल संस्कार न थवाने लीधे, आगळ जतां धर्माभिलाषा बीलकुल रहेती नथी अने तेने लीधे आपणा परमपूज्य धर्मनी आस्थापर औदासीन्य उत्पन्न थाय छे. इंग्लँड आदि देशोमां राज्याश्रयने लीधे, तेमना धर्मनुं शिक्षण स्कूलोमां तथा कॉलेजमा भापवामां आवेछे; परंतु आपणे परावलंबी थवाथी आपणा पवित्र धर्मनुं शिक्षण आपवानी सगवड आपणाथी बनी आवती नथी, ए बहु दिलगीरीनी वात छे. पाश्चात् राष्टोना लोकोनुं लक्ष बधं आधिभौतिक एटले आ लोकमां मळनारा सुख तरफ, तथा पोताना शरीरना पुदगळने वधारवा तथा सजाववा तरफ वधारे छे. परलोकनी तेमने कशी फिकर नथी, कारणके तेमना शास्त्रकारोए परलोक मान्योज नथी, तथी ते तरफ एमने जोवानुं प्रयोजन नथी; परंतु आपणा धर्मनां उंडां तत्वोमां परमार्थ तरफ घणो उंडो विचार करेलो छे; आधिभौतिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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