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________________ ( ६८ ) अबे धर्मरे बारांमाय आपने तो जादा केणारी जरुरी नहीं. सिंदूरप्रकरणमांय धर्मरी महती बताई है. इंद्रवज्रा वृत्तम्. यः प्राप्य दुःप्राप्यमिदं नरत्वम्, धर्मे न यत्नेन करोति मूढः । क्लेशप्रबंधेन स लब्धमब्धौ, चिंतामणि पातयति प्रमादात् ॥ इणरो भावार्थ कांई हे के, ओ मिनखा भव मोटा मुस्कलसुं मिळन, जिको बेबकुफ धर्म करे नहीं ऊ मुस्कलसुं हाथ आयोडा चिंतामणि रत्नेन समंदरमें फेंक देवे हे. आदमीरा दिलमहिंसुं इण भवरी ओर परभवरी कल्पना दोड जावे तो न्यात ( समाज ) कंपायमान हुयने तिणरो चुरोचुरो कित्रो झटपट हुसी तिणरो पत्तो लागसी नहीं नास्तिकपणामुं राष्ट्ररी (nation) चळचळाट हुई नहीं और हुशी नहीं. कार्लाईल साहेब के है के 'श्रद्धा आ एक मोटी चीज है, जीव-प्राण देणावाळी हे' ( belief is great, life-giving ). पश्चिम फ्रान्समें एक बरस' इण नांवरा किताब में एडवर्डस साहेब लिखे हे के शिक्षणरी फेलावो, शास्त्र, वाङ्मय ओर कलारी प्रगति, आगगाडी, तारायंत्र वगैरे आधी (hali) सुधारणा है ओर हाथोहाथ धर्म, राज और श्रद्धारा संस्कारने पूज नहीं लागसी तोईज मुबीतो रेसीनशीब ऊपर भरोंसो ओर हवाला देने उदमने कम समजणो आ धर्मकल्पना न्यातरा जोरने घटावे हे. मिंदारमार्गी सम्मेगी इंडियारो धेक करणो लाजम नहीं. आ बात ध्यानमें लेणालायक हे के वेई आखर तो जेनीज बाजे हे. क्रिस्तानाबिचे तो घणाघणा सिरे है !! 'सेंसाररी ऊंची कल्पना'रे बारांमांय, सिरदारही, तीन अंगभूत अंतर्कल्पना कांई हे सुं अबे आप परख कर लीनी हे. पेली अंतर्कल्पना कांई हुयी के (१) तुमारो जनम तुमारे देसरा सेवावास्ते है; दूजी कांई हुईके (२) वा सेवा निष्कपट और पेटाबिनारी चाइज; र्ताजी कोई हुई के (३) वा सेवा राजकीय ( राजरा) सामाजिक (न्यातरा ) और धार्मिक यां तिनोई वाबतांमांय सिरीखी फेलाणी चाइजे. एक लारे और दूजी आगे कामरी नहीं. एक इटालियन ओठो हे के ‘झिको भिणीजे ऊ हुकमत चलावे. ( he who reads rules ); और भागवांन तथा ताकदवाळा मल्ल हुकमत चलावे आ बात तो खारज है. भिणीज्योडा आदमी 'सेंसार ऊंची कल्पना' जो चार्वाक आगे मत फेलायो हुतो तिण मुजब 'खावो पीवो मोज उडावो इस्त्रेको हुय जावे तो दूजारी पीछे कांई गिणती ? पिण सिरदारहो, भिणीज्योडा आदमीमांय 'सेंसाररी ऊंची कल्पना ' तो हे पि धीरज - नैतिक धीरज —— नेकीरो धीरज नहीं हुवे तो वा 'सेंसाररी ऊंची कल्पना' फोगटीज है. स्माइल्ससाहेब इण धीरजरो ( moral courage ) इण मुजब वखाण करे हे. “सांच कांई हे सुं पारखने साचो बोलणारी हिम्मत रखणी, मोहरे जंजाळसुं लंबो रेणो.” (The courage to seek and speak the truth; the courage to resist temptation. > अंदाजे तीनसो बरसां पेली इण चोखळामें तुकाराम करने एक मोटा साबु हुय गया. वे कांई केवे के: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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