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________________ (३५) बरमा, सीलोन, चीन, जापान, मेंगोलिया, मंचुरीया, तुर्कस्थान, अने सैबिरिया, आदि घणाज मुलकमां फेलायला बुद्ध धर्मनां मूळ पुस्तको तांबा, रुपा अने रोळ गोल्ड (सुवर्णमय चांदीनां पत्र ) ना मजबुत पत्रां उपर लखायलां जोवामां आवे छे अने तेने साटीन अने मखमलना कवरमा राखवामां आवे छे, त्यारे आपणे अल्प वखतमां नाश पामे एवा कागळो उपर जैनधर्मनां आधारभूत पुस्तको लखावीए छीए, अने तेने उपर रुपानां सूवर्णनां, अने मोतीथी जडित पुठांओमां मुकीए छीए; तो हवे रुपा, सोना अने मोतीथी जडित पुठांओमां सोना रुपानां मजबुत पत्रां उपर लखेलां पुस्तको तेमां राखवामां आवे तो ज्ञाननी घणीज किंमती भक्ति थई एम लालन गणे छे. छेवटे जणाववानुं के प्राचीन जैन पुस्तकोनो उद्धार करवा माटे जैन भाईओए खास ध्यान आपवानी जरुर छे." होशीयारपुरवाळा पंडित तातारामनुं हिंदी भाषामां भाषण. आजे पंजाब, मारवाड, रजपुताना वगेरे देश देशांतरथी भेगा मळेला स्वधर्मी जैनोने जोईने मने घणी खुशाली उपजे छे; आपणे उत्तम राज्यमां वसीए छीए, तेथी आपणे पोतपोताना धर्मो पूर छटथी पाळी शकीए छीए. जैन धर्म दुनियानो सौथी प्राचीन धर्म छ अने तेमां महापुरुषो अनेक थई गया छे. दुनियामां घणा धर्मो छे अने घणा महापुरुषो थई गया छे, पण आपणा हेमचंद्र महाराजने तो दरेक धर्मवाळा वखाणे छे. तेमनां पुस्तकोना अंग्रेजी भाषामां पण तरजुमा थया छे. एवां आपणां प्राचीन धर्मनां महापुस्तको घणे ठेकाणे लगभग नाश पामवानी अणी उपर आव्यां छे, जेथी तेने बचाववानी घणी जरुर छे. (ताळीओ) आपणा घरमां ते पुस्तको फोकटनां पडी रह्यां छे, पण ते किंमती रत्नो केटलां मोंघां छे अने ते केवां उपयोगी छे, ते आपणे जाणता पण नथी. माटे जरुरनुं छे के आपणा भंडारमा पडेलां ए रत्नरूपी पुस्तकोमां शुं लखेलुं छे ते जाणवू अने आपणुं तारण करवू. -:0:-- वकील मगनलाल हरीचंद पाटणवाळानुं भाषण. महेरबान प्रेसीडन्ट साहेब अने मारा जैन बंधुओ अने बहेनो ! आ चालु विषय पुस्तकोद्धारनो छे, ते विषय घणो मोटो अने प्रौढ छे अने तेना संबंधे मारा पहेलां दरखास्त मुकनार कुंवरजीभाई अने ते पछी टेको आपनार पंडित लालने ते विवेचन कर्यु छे ते घणुं सारं अने ते मळेल टाईमना प्रमाणमां सारं चर्चायेलुं छे. मारे पण ए बदल कहेवानुं हतुं, पण मने जे टाईम मळेलो छे ते घणो थोडो एटले जूज पांच मीनीट छे, जेथी ते थोडा टाईममां मारे टुंकामां जे कांई कहेवानुं ते कहे, जोइये. हुँ आ विषय वधारे न चर्चावतां एटलु जणावीश के पुस्तकजीर्णोद्धार आ विषय आपणा धर्मनो मुख्य पायो छे. ते धर्मना महान् आचार्योए वीर भगवाननी वाणीरुपे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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