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________________ ( २२ ) जैन धर्मका मुख्य सिद्धांत सर्व जीवों की रक्षा करनेका है; सिद्धांत के अनुसारही धर्मके अध्यक्ष लोग ऐसी प्रवृत्ति करते हैं; सर्व जैनीओका खास कर्तव्य है कि सब जीवोंकी यथाशक्ति रक्षा करै, इसी नियमके अनुसार बडे २ नगरोंमें पिंजरापोल स्थापित की हुई हैं, उनमे अच्छी तरेहसें बंदोबस्त होना चाहिये. और जहां २ पर पिंजरापोल नहीं हैं वहां २ पर कलकत्ता, बंबई, अहमदाबाद आदि नगरोंकी तरह पिंजरापोल स्थापित कर खर्च आदिका प्रबंध करना चाहिये. जिन ग्रामोंमें ऐसा यत्न न हो सके वहांपर जैनी भाईयोंको स्वयं पिंजरापोल खोलना चाहिये, और ऐसे सुकर्मोंमें अपना द्रव्य लगाना चाहिये. इसी तरह जीवदया आदिके लिये उपदेश देनेवालोंको योग्य सहायता दे कर इस कार्यकी प्रवृत्ति बढाना चाहिये. मनुष्य जातिकी अवनतिका सबसे बडा कारण हानिकारक रिवाजही हैं. हमारे देशमें बहुतसे हानिकारक रिवाज प्रचलित हो रहे है. मनुष्यके मरजानेपर रोनापीटना, कन्याविक्रय, वृद्धविवाह, बालविवाह, मृत्यु पीछे जिमनवार ( भोजन ), विवाह के समय उडाऊ खर्च, और धर्म विरुद्ध रीतियां तथा क्रिया आदि हानिकारक प्रथाओंसे धार्मिक, शारीरिक, और आर्थिक, अवनति होती है. इस लिये अपने देशके अनुसार ऐसे रिवाजोंको कम करने तथा उनको बिलकुल उठा देनेका यत्न करना हम लोगोंका मुख्य कर्तव्य है. ऐसा करनेसे हालमें होती हुई अवनतिके बदले उन्नति होगी. हम जैनी लोगोंमें साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओंकी संख्या कितनी है इस बा तको जाननेके लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है इतनाही नहीं, किंतु हिंदुस्थानके भिन्न भिन्न स्थानोंमें हमारे कितने मंदिर है, और उनमें कितनी प्रतिमा है और तीर्थ कहां २ पर हैं, इसको भी जाननेके लिये कोई संपूर्ण डीरेक्टरी हमारे पास नहीं है, और न पृथकपृथक विद्वानोकें बनाये हुए जैन ग्रंथोंहीकी फहरीस्त है. हम बहुत बातोंसे नावाकिफ है. और इसीलिये बहुत से विचारे हुए कार्योको करनेमें हम लोगोंकु मुश्किल पडती है. इस अभावको दूर करने के निमित्त एक डाईरेक्टरी बनानेका काम सत्वर शुरू करना चाहिये. इसकी बडीही आवश्यकता है, इसलिये यह काम सबसे प्रथम प्रारंभ करने रखे हमको यत्न करना चाहिये. देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य और साधारण द्रव्यसंबंधी जुदे जुदे जहां २ पर हिसाब रखे जाते है वहां २ पर जो अच्छी व्यवस्थासे न रहते हो तो उनमें अवश्य गडबड होना संभव है; इस लिये ऐसे सब खातोंके मुखियाओं को हिसाब जाचनेके लिये कमीटी नियत करने और हिसाब साफ रखनेका यत्न करना चाहिये. इस विषयमें एक बात अधिक ध्यान देनेकी है. वह यह कि और सब खातोंकी अपेक्षा साधारण खातेकी तरफ अधिक ध्यान देना चाहिये, जिससे उस खातेके द्रव्यकी वृद्धि हो, क्योंकि साधारण खाता ही सब खातोंका रक्षक है. उसके कमी रहनेसे ही लोगोंको दोषित बनना पडता है और उसका द्रढ पाया होनेसे सब खातें अच्छी तरहसे चलते है. इन उपर लिखी हुई बातोंके सिवाय बहुतसी ऐसी बातें है कि जिनपर ध्यान देने की हम लोगोंको आवश्यकता है, परंतु सब काम एक साथ नहीं हो सकते इस लिये उन विषयोंके लिये आपका समय नहीं लेना चाहता हूं केवल इतनाही कहना चाहता हूं की इन विचारे हुए कामोंको कैसे करना चाहिये इसका हम लोगोंको विचार करना आवश्यक है. इस विषयमें मेरी यह राय है कि अमुक स्थानमें अमुक कार्य करनेका विचार और व्यवस्था करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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