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________________ ( ७२ ) , या त्वं मदाशयं ज्ञात्वा प्राप्तेह वरवर्णिनि ! | त्वया विरहितं शून्यं मम स्थानं जगत्रयम् ॥ ६५ ॥" भावार्थ - उस स्त्रीको महादेवजी सर्व अवयवोंसे पार्वती समज कर उसकी सज्जनताकी प्रशंसा की और कहा तूं मेरे आशयको जाण कर यहां आई सो अच्छा किया, क्यों कि मुझे तेरे विनां तीनों जगत् शून्य भासते हैं. इस बयान से भी महादेवजी ज्ञान शून्य सिद्ध हुए, अगर वो ज्ञानी होते तो समज जाते कि यह पार्वती नहीं है. पद्मपुराण प्रथम सृष्टिखंड अध्याय ४६ पत्र - १४६ वे में अंधक नामके दैत्यसे शिवजीका युद्ध हुआ, उसने शिवजीको गदा मारी, तब शिवजी उस गढ़ाकी मारसे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पडे, मुहूर्त-दो घडी के बाद चेतनता आई, उस वख्त हाथमें पर्शु लेकर उसको मारने को उठे, परन्तु उस दैत्यने ऐसी तामसी माया फेलाइ, जिस मायासे महादेवजी के देखने में वो दैत्य नहीं आया, तब सर्व देवताओ सूर्यदेवकी स्तुति करने लगें, और महादेवजी भी बढी आजीजीसे सूर्य देवकी स्तुति करने लगे, सो यहां लिखते हैं, पढो << प्रभाकर ! नमस्तेऽस्तु भानो ! जय जगत्पते ! । अनेन दनुमुरूयेन, पीडितोऽहं जगत्पते ! ॥ ७० ॥ किं करोमि ! कथं चैनं १, घातयामि दिवाकर ! | सूर्य उवाच जय शूलेन पापिष्ठं, मायाशतविशारदम् ॥ ७१ ॥ " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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