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________________ (५०) तो महादेवजी कृष्णजीको वरदान माँगनेकी प्रेरणा करते हैं और इधर-सनत्कुमारके तेरहवें अध्यायमें ब्रह्मा विष्णु और महेश मैं ही हूं ऐसा कहते हैं, अब इन परस्पर विरुद्ध दोनों पाठोंमेंसे किसको सच्चा कहना और किसको असत्य कहना ? सो बात बुद्धिमानोंको विचारनेकी है. शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय तीसरेमें उल्लेख किया है कि तारकाक्ष विद्युन्माली और कमलाक्ष इन दैत्योंने बडी भारी तपश्चर्या की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजीने उनकों वर माँगनेको कहा तब उनोने हाथ जोडकर कहा कि हे भगवन् ! हम पराक्रमवालोंका ऐसा स्थान कोई नहीं है जो शत्रुओंसे अधृष्य हो और जहां हम सुखसे निवास कर सकें, अब तारकाक्षने कहा जो देवताओंसे अभेद्य हो ऐसा विश्वकर्मा हमारे वास्ते सुवर्णका स्थान बनावें, विद्युन्मालीने महाकठीन लोह दुर्ग की और कमलाक्षने चाँदीके दुर्गकी प्रार्थना की, इसके बाद वे पराक्रमो दैत्य फिर कहने लगे, हे देव ! हम दिव्यलोकमें ही अपने स्थानकी इच्छा करते हैं अन्यत्र नहीं, तब ब्रह्माजीने विश्वकर्मासे कह कर उनके वास्ते तीन पुर बना दिये, और उन तीनों पुरोंमें दैत्यलोक रहने लगे, तथा सकुटुंब देवतादिकोंका उन दैत्योंने बुरा हाल किया तब देवता लोक शिवजीके शरण गये और स्तुति करी, आखर शिवजीने उन तीनों नगरोंको स्त्रीओं तथा बालबच्चा सहित भस्म कर दिया, इस वर्णनसे शिवजीमें अधर्म तथा निर्दयता सिद्ध होती है, क्यों कि सामान्य रीतिसें जरा भी . धर्मको समजता हो उससे भी ऐसा कार्य नहीं हो सकता है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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