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________________ ( ३९ ) श्लोकोंमें लिखा हुआ है कि विना ही तप जपके किये पापीकी भी मोक्ष यहां मरने मात्रसेंही हो जाती है, तथा डांस मच्छर कीडी मकोडा वृक्ष वलडी आदिका भी काशीक्षेत्र में प्राण छुटे तो मुक्ति हो जाती हैं इस ही अध्यायके ३९ से ४१ श्लोक तक में महादेवजी अपनेही मुखसे अपनी तारिफ करते हैं कि इस क्षेत्रमें रह कर वैकुंठपति नारायण लक्ष्मी ब्रह्मा सूर्य आदि देवता तथा और भी महायोगी जन अनन्य ध्यान होकर सदा मेरी उपासना करते हैं, इस तरह से अपने आप अपनी स्तुति करना क्या महात्माको उचित है ? इस बात पर बुद्धिमान् स्वयं विचार करेंगे. तथा इसी ५० वे अध्यायका १५ वा श्लोक दखो“ तद्दर्शनं ह्यहं विष्णुर्ब्रह्मा चापि तथा पुनः । कामयन्ति च तीर्थानि पावनायात्मनस्तथा ।। १५ ।। " 44 बहुत कहने से क्या है ?, इस तीर्थ दर्शनकी मैं विष्णु और ब्रह्माजी अपने पवित्र होनेके निमित्त कामना करते हैं, इस श्लोक के देखने पर साफ जाहिर होता है कि शिवजी विष्णु तथा ब्रह्माजी यह तीनों ही देव अपवित्र थे, जब यह तीनों ही देव अपवित्र हैं तब इनके पुराण सुननेसे तथा इनकी पूजा करनेसे दूसरे प्राणी कैसे निर्मल होसकते हैं ?, तथा कैसे मोक्षको प्राप्त कर सकते हैं ?, इसी १० वें अध्यायके ४२ वे श्लोक में लिखा है कि • "विषयासक्तचित्तोऽपि त्यक्तधर्मरुर्चिनरः । इह क्षेत्रे मृतो यो वै, संसारं न पुनर्विशेत् ॥ ४२ ॥ " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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