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________________ द्वितीय - - दिवस. सरे दिन सूरीश्वरजी महाराज प्रतिक्रमणादि अपने धार्मिक कार्यों से फारिग होकर जिनेश्वर प्रभु के दर्शन कर अपने आसन पर विराजमान हो चूके हैं, उस वख्त वह भव्य श्रावक हाथ जोडकर मधुर स्वर से इच्छामिके पाठसे वन्दन कर सूरीश्वरजी महाराज से साडेतीन हाथ दूर बैठ गया, और सूरीश्वरजी महाराजने अपनी मधुरध्वनिसे पुस्तक सुनाना शुरु किया. ho दु आजका बयान पुराणों के विषयमें शुरु होनेवाला है इस विषयका जिकर तो सूरीश्वरजीने प्रथम दिवसके व्याख्यान में ही कर दियाथा, सो बात तो इस लेख के पढनेवाले अच्छी तरहसे जानते ही हैं, बस अब उसी करारके मुताबिक सूरीश्वरजी महाराजने फरमाया कि श्रद्धालु श्रावकवर्य ! पुराणोंको देखते हैं तो प्रथमही यह मालूम हो जाता है कि ये अल्पज्ञोंके कथन हैं कारण कि परस्पर बडे ही विरोध नजर आते हैं, शिवपुराणवाले शिवपुराणका माहात्म्य गाते हैं तो विष्णुपुराणवाला विष्णुपुराणका, इतने से ही शांत नही होते हैं तो आगे बढ़कर शिवपुराण; शिवपुराण के शिवाय बाकीके तमाम पुराणको भ्रमशास्त्र कहता है, देखो शिवपुराण माहात्म्य प्रथम अध्यायका प्रथम पत्र -- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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