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________________ (२३ ) हो झगडेखोर हिंसक मांसाहारि दुराचारो कामी क्रोधी को ईश्वर मान कर भजन करनेसे कभी कल्याण नहीं हो सकता है और अष्टादश दूषण रहित परमात्माके ध्यानसे तुरत ही मुक्ति मिल सकती है, इस लिये शुद्ध परमात्माका ही ध्यान करना चाहिये, अब निष्पक्ष विचारक के दिलमें यह स्वाभाविक ही विचार आ सकता है कि जगत्की माया मोहसे तप्त हुए हमको उस परम पवित्र राग द्वेष रहित परमात्माका ध्यानरूप अमृत हो परम शीतल बना सकता है, परंतु इसकी पहचान हम कैसे कर सकते है कि हींदु अवतार वीतरागी है या जैनावतार १, तो उनको नीचके श्लोक और उसके अर्थकी तरफ ध्यान देनेसे स्पष्टतया मालूम हो जायगा कि कौनसे अवतार राग सहित हैं और कौन कौन राग रहित हैं,___ " प्रत्यक्षतो न भगवान् ऋषभो न विष्णुरालोक्यते न च हरो न हिरण्यगर्भः । तेषां स्वरूपगुणमागमसम्प्रभावात् । ज्ञात्वा विचारयत कोऽत्र परापवादः? ॥ १ ॥ " भावार्थ-प्रत्यक्षसे जैनियोंके देव श्रीऋषभदेवस्वामी अब मनुष्य लोकमें मौजूद नहीं होनेसे नहीं देखे जाते, ऐसे ही... वैष्णवोंके इष्टदेव विष्णुजी भी दृष्टिगोचर नहीं होते, शैवके इष्ट शिवजी तथा ब्रह्माजी भी प्रत्यक्ष देखनेमें नहीं आते तो कैसे जाना जावे कि कौन राग द्वेषवाले हुए और कौन राग द्वेषसे रहित हुए?, तो इसके उत्तरमै समझना कि उन उपर कहे हुए नामवालोंकी मूर्तियों से मालूम कर सकते हों कि कौन कौन रागद्वेष रहित हैं औ कौन कौन सहित हैं ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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