SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ " यदि कारयिष्यन्मारयिष्यन् भवति तदाच दाता 'आलभेत' एवं वदेत् ।' इससे स्पष्ट हुआ कि जहां मारना हो वहां ' आलभेत' यह प्रयोग किया जाता है . ___अनरकोष द्वितीय कांड क्षत्रवर्ग श्लोक ११२- तथा अभिधानपिंतागणि मर्त्यकांड श्लोक-३५ इन दो प्रसिद्ध कोशोंमें भी ' आलंभ' शब्दका वध अर्थ किया हुआ है. ऐतरेय ब्राह्मण पुष्ठ ८५१ तकमें · शुनः शेप ' की कथा लिखी हुई है. वशिष्ठ विश्वामित्र जमदग्नि प्रभृति ऋषियों के अध्वयु होता ब्रह्मा आदि होते हुए. अजीगतके द्वारा ' शुनः शेप' स्तंभसे बंधवाया गया. तथा तलवारके द्वारा काटनेका समय आया तब 'शुनः शेपने देखा कि, ब्राह्मण वशिष्ठादि ऋषि मारनेके लिये सम्मत है, अत एवं वरुणकी प्रार्थना करने लगा. पीछे उसक बंधन तुटने लगे इत्यादि. ____ यदि ' नरमेध-वेद' में न होता तो फिर वसिष्ठ जी जैसे ब्रह्मर्षि यज्ञ करने के लिये क्यों तैय्यार होते ?. ___ इसी तरह 'महाभारत' के वनपर्वमें भी नरभेषका जिकर है. अब गौके विषयमें देखिये ! " पुरुषस्य सयावरि वि ते प्राणमसिस्रसं, शरीरेण महीमिहि स्वधयेहि पितृनुप प्रजयाऽस्मानिहावह ।" । तैत्तिरीय-आरण्यक प्रपाठ ६ अनुवाक १ मंत्र-११) '. पदार्थ:-रे (पुरुषस्य ) मृतपुरुषकी... ( सगावरी) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy