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________________ यही एक बड़ी भारी छाप ब्रामणधर्मपर मारी है. पूर्वकालमें यज्ञके लिये असंख्य पशुहिंसा होतीथी. इसके प्रमाण · मेघदूत काव्य ' तथा और भी अनेक ग्रन्थोंसे मिलते हैं. रतिवेद ( रंतिदेव ) नामक राजाने यज्ञ कियाथा उसमें इतना प्रचुर पवशुध हुआ था कि, नदीका जल खूनसे रक्तवर्ण हो गया था. उसी समयसे उस नदीका नाम 'चर्मवती ' प्रसिद्ध है. पशुवध से स्वर्ग मिलता है. इस विषयमें उक्त कथा साक्षी है. परन्तु इस घोर हिंसाका ब्राह्मणधर्मसे बिदाई लेजानेका श्रेय (पुण्य) जैन के हिस्समें है. “ परन्तु ब्राह्मणधर्मपर जो जैनधर्मने अक्षुण्ण छाप मारी है उसका यश जैनधर्मके ही योग्य है. अहिंसाका सिद्धान्त जैन धर्ममें प्रारंभसे है और इस तत्त्वको समझनेकी त्रुटिके कारण बौद्धधर्म अपने अनुयायि चीनियोंके रुपमें सर्वभक्षी हो गया है. ब्राह्मण और हिंदु धर्ममें मांस भक्षण और मंदिरापान बन्द होगया यह भी जैनधर्मका प्रताप है." " दया और आहिंसाकी ऐसी ही स्तुत्य प्रीतिने जैनधर्मको उत्पन्न किया है. स्थिर रक्खा है और इसीसे चिरकाल स्थिर रहेगा. इस अहिंसा. धर्मकी छाप जब ब्राह्मणधर्मपर पड़ी और हिंदुओंको अहिंसा पालन करनेकी आवश्यकता हुई तब यजमें पिष्ट पशुका विधान किया गया. सो महावीरस्वामीका उपदेश किया हुआ धर्मतत्त्व सर्वमान्य होगया और अहिंसा जैनधर्ममें तथा ब्राह्मणधर्ममें मान्य हो गई." इत्यादि अनेक बातें भाषणमें कहीथी देखिये ! जैन धर्मके विषयमें एक तरफ महानुभाव तिलकके उद्गार और एक तरक नवलराम, घनश्याम, ठकुरके उद्गार. जो इस भागमें मीमांसा करनेके लिये लिखे गये हैं मालम होंगा कि, मध्यस्थ और ममत्वस्थके हृदयमें कितना तफावत होता है. एक तरफ अमृत है तो एक तरफ हलाहल जहर है. खैर. मध्यस्थ मनुष्य हमारी इस महिनतसे फल उठावें यही अभिलाषा है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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