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________________ (१८०) तेजस्वो अरिन स्मशानमें मुर्देकी दहन क्रिया करता हुआ भी दूषित नहीं होता किन्तु यज्ञमें बुलाया हुआ भी बढता है ॥३१८ ॥ इसतरह यद्यपि ब्राह्मण सर्व कुत्सित कौंको चाहे करें तथापि सब प्रकारसे पूजने योग्य हैं. क्यों कि वे ब्राह्मण परमदेवता रूप हैं । ३१९॥ " दत्त्वा धनं तु विप्रेभ्यः, सर्व दण्डसमुत्थितम् ।। पुत्रे राज्यं समासृज्य, कुर्वांत प्रायणं रणे ॥ ३२३ ॥" भावार्थ-जिस समय राजाको उत्तम ज्ञान हो अथवा चिकित्साके अयोग्य व्याधि हो जाय उस समय मृत्युको समीप देख कर महापातकीक दंडसे भिन्न जो संपूर्ण दंडका धन होउसको ब्राह्मणोंको अर्पण करके और पुत्रको राज्यकारभार देकर उत्तम फलकी प्राप्तिके लिये संग्राममें अपने प्राणोंका त्याग राजा करे. यदि संग्राम न होय तो भोजनको त्याग कर प्राणोंको त्यागे ॥ ३२३ ॥ ___ 'इस श्लोकमें दंडका सर्व धन ब्राह्मणको देकर प्राणका त्याग करे. बस-यही विचारणीय विषय है कि स्वार्थका कुछ पारवार है ?. ____ इन ग्रंथोंका मध्यस्थ भावसे विचार करते हैं तो मालूम होता है कि, इनके रचयिताने अकलसे काम नहीं लिया है. पुरावेमें नीचेके श्लोक देखो" हत्वा लोकानपीमास्त्री-नश्ननपि यतस्ततः । ऋग्वेदं धारयन् विप्रो, दैनः प्रामोति किंचन ॥२६॥" म-अ-११॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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