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________________ (१७५) और पितर कव्य सदैव खाते हैं उससे अधिक प्राणी कौन " भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः, प्राणिनां बुद्धिजीविनः । बुद्धिमत्सु नराः श्रेष्ठा, नरेषु ब्राह्मणाः स्मृताः ॥ ९६ ॥" भावार्थ-थावर जंगमोंमे प्राणवाले और प्राणवालोंमें बुद्धिवाले और बुद्धिवालोंमें मनुष्य और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है ॥ ९६ ॥ . . . " विद्वाँस्तु ब्राह्मणो दृष्ट्वा, पूर्वोपनिहितं निधिम् । अशेषतोप्याददीत, सर्वस्याधिपतिहि सः ॥ ३७ ॥ म० अ० ८ अर्थ-विद्वान् ब्राह्मण तो किसीकी रक्खी हुई निधिको देख कर सबको ग्रहण कर ले. क्यों कि वह विद्वान् ब्राह्मण सबका प्रभु है ॥ ३७॥ " यं तु पश्यनिधि राजा, पुराणं निहितं क्षितौ ।। तस्माद द्विजेभ्यो दत्त्वाई-मई कोशे प्रवेशयेत् ॥ ३८ ॥" भावार्थ-पृथ्वीमें गड़ी हुई पुराणी निधिको राजा देखे. अर्थात् राजाको मिले उस निधिर्मसे आधा धन ब्राह्मणको दे कर आधा अपने कोशमें रख दे ॥ ३८ ॥ देखा? इन उपरके श्लोकोंमें ब्राह्मण लोगोंने अपने स्वार्थकी किस कदर पुष्टि की है ?. " मौण्ड्यं प्राणान्तिको दण्डो, ब्रामणस्य विधीयते । इतरेषां तु वर्णानां, दण्डः प्राणान्तिको भवेत् ॥१३९॥" में अ-८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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