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________________ शंकर उस काशीराजाके पुत्र पर प्रसन्न होकर कहने लगे.. वर मांग. उस राजकुंवरने वर मांगा कि, मेरे पिताको मारनेवाले जो श्रीकृष्ण है उसका वध करनेके वास्ते यह 'कृत्या' आपके प्रसादसे उठो शंकरने कहा ऐसा ही होगा. ऐसा कहनसे वो कृत्या अग्निरूप उठ कर कृष्ण कृष्ण बोलती हुई कृष्णको भस्म करनेके लिये द्वारकामें पहुंची. द्वारकावासी लोग घबराकर श्रीकृष्णके शरणमें गए. उसी वख्त श्रीकृष्णने सुदर्शन चक्र उस शंकरकी कृत्या उपर फेंका, उसी वख्त वो कृत्या वहांसे पीछेको भागी; और काशीपुरीमें दाखिल हो गई. सुदर्शनचक्र भी. उसकी पीछे लगा हुआ गया; तब काशीराजाका सैन्य तथा महादेवजीका प्रमथ गण भीजो शास्त्रास्त्र छोडनेमें बडा चतुर था-बो सुदर्शनचक्रको पीछा हटानेके लिये सामने आया; परन्तु अग्निकी ज्वाला. ओंसे जटिल उस सुदर्शनचक्रने काशीराजाके सैन्यको तथा महादेवजीके प्रमथ गणको भी भस्म कर डाला. इस पूर्वोक्त उल्लेखसे विदित होता है कि, महादेवजी अनभिज्ञ थे. अन्यथा जान लेते कि, कृत्यासे श्रीकृष्णका वध नहीं होगा; बल्के कृत्याको नाश करनेके वास्ते श्रीकृष्ण चक्र चलावेगा उसके डरसे भाग कर कृत्या काशीपुरीमें घुस जायगी और चक्र आकर मेरे प्रथम गण समेत काशीको भस्म करेगा और मेरा दिया हुआ वर भी झूठा हो जायगा. ऐसा नहीं जाना और काशीराजपुत्रको वर दे दिया इससे साफ साबित हुआ कि, शंकर पूरे अनभिज्ञ थे. ऐसे अनभिज्ञ और दया शून्योंकों ये लोग परमात्मा किस तरह कह सकते हैं ?. इसका सत्य उत्तर उन लोगोंका अंतगत्मा देवे और ये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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