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________________ (१६१) हो गया, मात्र पांचसो रुपये उसकी पास बाकी रह गए थे तब उसने विचार किया कि, विदेशमें जाकर कुछ अपूर्वचीजोंको खरीद लाऊं. जिसको देशमें बेचनेसे अच्छा नफा रहे. वह दुर्भागी मनुष्य जिस देशमें रहता था उस देशमें 'कोल्हा' फल नहीं होता था और खरगोश-ससला भी नहीं होता था. तदनंतर वह विदेशमें गया और देखा तो किसी एक नगरके शाक बाज़ारमें एक आदमी कोल्हे बेच रहा था. उसको उसने प्रथम अपनी बात सुना दी कि, मुझे पांचसौ रुपयेका. ऐसा माळ खरीदना है कि जिसको मैं अपने देशमें बेचुं तो दूना दाम पैदा हो. उसकी बातको सुन कर वह शाकबेचनेवाला समझ गया कि, यह कोई बेवकूफ आदमी है इसको अच्छी तरहसे ठगे. ऐसा विचार करके बहुत मीठे शब्दोंमें उस दुर्भागीके साथ बातचीत करनी शुरू की. वह दुर्भागी उसे अपना मित्र समझने लगा. थोडोसी बातचीत चलनेके बाद उस अभागोने उससे प्रश्न किया कि, इस टोकरीमें क्या है ?. उसने कहा ये घोडेके अंडे हैं. जब उस मूर्खने किम्मत पूछी तब उस धूर्त्तने सातसौ रुपयेको किम्मत बतलाई. वह विदेशी चौंक कर पूछता है कि, हैं ? इतनी किम्मत क्यों ?, शाकवालेने उत्तर दिया कि इस अंडेमेंसे घोडा निकलेगा तब वह एक हजार रुपयों का होगा और दो चार महिनें इसको माल मसाला खिलानेमें आवेगा तो चौदहसौकी किम्मत भी हो जायगी. इस बातको सुन कर उस विदशीका मन उसे खरीदनेका हुआ परतु उसके पास रुपये मात्र पांचसौ ही थे, इस लिये चित्त घबराता था. अंतमें बढ़ो अधीरतासे उसन कहा कि, मेरा दिल इस चीज़को ले जानेका है परंतु क्या करूं? मेरे पास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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