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________________ (१९०) युक्ति प्राधान्य हो उसी पुस्तकका मानना योग्य है. पृष्ठ ७९ और ९७ पर भी इसी तरह जतिके वेष परावर्तनकी खोटी कल्पना की है. आगे पृष्ठ १४० तथा १४१ वें में जतिके साथ एक पूजारीका संवाद भी अपने देवोंकी महत्वता बढ़ानेके लिये काल्पनिक बना लिया है, सो भी प्रमाणशून्य है. किंबहुना ?. ora नभत ?' इस प्रकरणका शिर्षक ही लेखकके शिरस्थ द्वेषभावकी परिपूर्णताको बताता है. ऐसी द्वेष भावना.. वाले मनुष्य प्रमाण पर दृष्टि रख कर लिखें यह तो पानीमेंसे मक्खनकी प्राप्ति जैसा है. जतिको जमदूत बनानेकी चेष्टाने तो सत्यका खून करनेसे लेखकको ही जमदूत बना दिया है. जमदूत अंधकार मूर्ति होता है. इस किंवदन्तीसे घनश्याममें यमरंगका रूपक भी घट सकता है और इस नोवेलमें ठिकाने ठिकाने पर सत्यका खून किया है, अतः कर्मसे भी जमदूतका रूपक घनश्याममें घट सकता है.. जतिने आलेखी-" इतरा, राममा२, ४॥4४," आदि शब्दो मंडलेश्वरके मुखसे निकलवाये हैं. ये शब्दो भी घनश्याम के श्यामहृदयका पूर्ण परिचय दिलाते हैं. इस प्रकार कहीं लश्कर ले कर जति आया. कहीं मंडले. श्वरको नदीमें डुबा दिया. इत्यादि उस पुस्तकमें प्रमाणशून्य सनिपातिक मनुष्यकी तरह असंभाव्य प्रलाप किया है. गुरुदेव ! इस नोवेलके विषयमें मैंने मेरे ये विचार गत दिन 'पाटणनी प्रभुता ' को देख कर कितनेक यद्वा तद्वा बोलनेवाले मनुष्योंको समझाएं वे ऐसे मध्यस्थ थे कि, तुरत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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