SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३४ ) aat aant लंबाना व्यर्थ समझ कर और हेमचंद्राचार्यजी जैसे परम पवित्र पुरुषके गुरुके मुखसे ऐसे शब्द कदापि नहीं निकल सकते जो एक चार्वाकके मुखसे निकले. ऐसा मान कर इस विषय में ज्यादा नहीं लिखते हुए सिर्फ इतना ही जाहिर करना चाहते हैं कि, पूर्वोक्त पृष्ठों पर किये हुए उल्लेखसे नवलरामने एतिहासिक ग्रंथोंसे अपनी बिलकुल नावाफफियत साबित कर दीखलाई है।' कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी महाराजके गुरु श्रीमान् देवचन्द्राचायजी महाराज थे. उनकी पवित्रता ऐसी अद्वितीय थी जिसका हिसाब नहीं. अगर इस बातका पता लगाना हो तो 'कुमारपाल - प्रबंध 'का भाषांतर जिसको बौदा निवासी श्रीयुत वैद्य मगनलाल द्वारा श्रीमंत गायकवाड सरकारने करवा कर प्रसिद्ध कराया है देख लेना. फिर नवलरामकी असत्य लेखिनीका और साथ साथ उसकी द्वेषिणी प्रकृतिका पूरा पता लग जायगा और श्रीदेवचन्द्राचार्यजीके पवित्र चरित्रकी वाक्फियत मिलने से वे महानुभाव कैसे एकांतसेवी और दुनियांकी सर्व तरह की खटपटसे दूर रहनेवाले थे, इस बाबत का विचार करनेसे नाटक रचनेवाले मिध्यांध महानुभावने ९३९५-९६-९८-९९-१००-१०९-११०-१११-११७.१४१ - २४५ तथा २४७ वे पृष्ठों पर जो कुछ प्रलाप किया है अरण्यरुदनवत् मालूम हो जायगा और जिस अंबाजीके वर्णनमें झूठे तरंगी घोडे दौडायें हैं वो अंबिका खास सूरीश्वरजीके चरणमें मस्तक झुकावे ऐसे पवित्र सूरीश्वरजीके लिये सिद्धराजको समझाना और बाबरेको तैय्यार करना आदि कल्पना इतनी असत्य प्रतीत होगी जिससे समझ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy