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________________ ( १२० ) अवतार धारण करता है और उसने कौनसे अवतार धारण किये उस विषयका जिकर है सो युक्ति सिद्ध नहीं है, कारण कि, ईश्वरको सर्व शक्तिमान् माना है सो अपनी शक्ति से ही सब काम कर सकता है तो फिर नाहक अपवित्र गर्भस्थान में आना, उसमें नौ मास निवास करना और अवतार धारण करके हजारोंका नाश करना क्या फायदा 2. इससे या तो ईश्वर असमर्थ सिद्ध होता है या यह कल्पना झूठी सिद्ध होती हैं. गरुडपुराण - पूर्व खंड प्रथमांशाख्य आचारकांड श्री गरुड महापुराणोत्पत्ति निरूपण नामके दुसरे अध्यायमें— शिवजी कहते हैं कि, 'मैं परमपरमेश्वर विष्णु भगवान्का ध्यान करता हूं, ' इससे शिवजी में परमेश्वरपना साबित नहीं होता, तथा विष्णुने अपने आप अपनी बड़ी ही तारीफ की है, सब कुछ मैं हूं और जगत् की स्थितिका बीज भी मैं हूं और धर्मका रक्षक भी मैं हूं इत्यादि कथन है, यहां पर बुद्धिमानोंको प्रश्न उत्पन्न होता है कि, जब जगत्का कर्ता विष्णु है तब तो जगत्मै चौर जार कसाई तथा गौवाँके मारनेवाले संचाबनानेवाले म्लेच्छलोग तथा डाका मारने वाले एवं अनेक प्रकारसे अनेक जुल्मोंके करनेवाले जगत्में ही है, उन सबका रचनेवाला विष्णु ही हुआ तब तो विष्णु ही घोरपापों के करानेवाला है एसा सिद्ध हो गया, अगर कोई कहे कि विष्णुने तो उन जीवोंको शुद्ध ही रचा था, परन्तु पीछे से उनकी दुष्ट बुद्धि हो जानेसे वे दुष्टकृत्य करने लग गये, ऐसे कहनेवालोंको पूछना कि, विष्णुने जब जगत्की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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